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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता है-उसकी विपुल 1444 खम्भों की स्तंभावली। मंदिर के कुशल शिल्पियों ने इतने सारे स्तंभों की सजावट ऐसे व्यवस्थित ढंग से की है कि, ये प्रभु के दर्शन करने में कही भी बाधारूप नहीं बनते। मंदिर के किसी भी कोने में खड़ा हुआ भक्त प्रभु के दर्शन पा सकता है। इनके अलावा नेमिनाथ व पार्श्वनाथ मन्दिर है। निकट ही सूर्य मन्दिर है। 1 कि.मी. दूर अम्बामाता का मन्दिर है। भारत के 5 जैन तीर्थों में राणकपुर आयतन में बृहत्तम है। इस मंदिर को "चतुर्मुख प्रामद" के अलावा "धरणविहार""त्रैलोक्यदीपक प्रासाद" एवं "त्रिभुवन-विहार" के नाम से भी जाना जाता है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों की सुविधा के लिये यहाँ पर तीन धर्मशालाएँ हैं। जहाँ रहने की अच्छी सुविधा है। साथ ही कुछ नये ब्लॉक भी बने हैं। पेढी की ओर से यहाँ भोजनशाला का भी प्रबंध है। धर्मशाला में रहने वाले यात्रियों के लिये ओढ़ने-बिछाने का सामान मिलता है। यदि कुछ यात्रियों को रसोई बनानी हो, तो बर्तन भी मिलते हैं। श्री देवकुलपाटक तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : उदयपुर से 26 कि.मी. दूरी पर, अजमेर मार्ग पर यह तीर्थस्थान है। परिचय : इस गाँव का प्राचीन नाम देवकुलपाटक था, अब इसे देलवाडा कहते हैं। यहाँ का मंदिर प्राचीन है, किन्तु विक्रम संवत् 1469 एवं 1954 में इसका जीर्णोद्धार हुआ। यहाँ की शिल्पकला देखकर आबू, कुंभारीयाजी और राणकपुर की याद आती है। यहाँ के शिखर, गुंबज, स्तंभ आदि जगह पर सुन्दर कलात्मक काम किया गया है। मूलनायक प्रभु की प्रतिमा सुन्दर, भव्य एवं प्रभावशाली है। आचार्यश्री सोमसुन्दरसूरी अनेकों बार अपने विशाल साधु समदाय के साथ यहाँ पधारे ऐसा "सोम सौभाग्य काव्य" में वर्णन आया है। इसके अतिरिक्त गाँव में अन्य तीन जिनमंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला है, लेकिन कोई खास सुविधा नहीं है। पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर महासभा मु. पो. देलवाडा, जि. राजसमन्द (राजस्थान) श्री राजनगर तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : कांकरोली से राजसमंद मार्ग पर डेढ़ कि.मी. तथा उदयपुर से 60 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। परिचय : मंदिर एक पहाड़ी पर है, जिसे दयालशाह का किला कहते हैं। महाराणा राजसिंह जी के मंत्री ओसवाल वंशज श्री दयालशाह ने उस जमाने में एक करोड़ रु. खर्च कर यह चर्तुमुख प्रासाद बनवाया है। मंदिर के निर्माता दयालशाह की शूरवीरता मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है। तेरापंथ संप्रदाय का उत्पत्ती स्थान यही है। यहीं से आचार्य श्री भिक्षु स्वामी ने अपने मत का प्रचार प्रारम्भ किया था। ठहरने का स्थान : यहाँ पर धर्मशाला एवं भोजनशाला है। दर्शनीय स्थान : जयसमंद झील के तट पर नाथद्वारा मन्दिर के अनुकरण पर श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश का मन्दिर दर्शनीय है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelib 93,
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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