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जैन तीर्थ परिचायिका
राजस्थान मूलनायक : प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ।
जिला अजमेर मार्गदर्शन : राजस्थान का प्रमुख नगर अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग न. 8 पर स्थित है। जयपुर से यह : 120 कि.मी. दर है. पष्कर तीर्थ यहाँ से 11 कि.मी. दर स्थित है। आब, उदयपर, जोधपर.
अजमेर
अजमर जयपुर, आगरा, दिल्ली, अहमदाबाद, मुम्बई सभी प्रमुख स्थानों के लिए यहाँ से नियमित बस सेवा है। रेलमार्ग द्वारा हावड़ा, दिल्ली, इन्दौर, हैदराबाद, चित्तौड़, आगरा, जोधपुर आदि सभी
प्रमुख स्थानों से जुड़ा है। रेल्वे स्टेशन और बस स्टैण्ड के मध्य 2 कि.मी. की दूरी है। परिचय : राजस्थान की प्रमुख पर्यटन स्थली अजमेर ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थली दोनों के
रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ का प्रमुख दिगम्बर जैन मन्दिर सोनी जी की नसियाँ है। सुभाष बाग के निकट ही लाल पत्थरों से निर्मित यह जैन मन्दिर। इसे लाल मन्दिर भी कहते हैं। यह सुन्दर नक्काशी से अलंकृत है। हॉल के एक अंश में गिलट किये काठ के मॉडल में मानव जन्म के क्रमिक विकास और जैन पुराण को उत्कीर्ण किया गया है। दो पृथक्-पृथक प्रखण्डों में इसका निर्माण हुआ है। दोनों के प्रवेश द्वार अलग-अलग है। इसके एक भाग में तेरह द्वीप की रचना है जिनके ढाई द्वीप की रचना विस्तृत है। दूसरे भाग में अयोध्या एवं पंचकल्याण की भव्य रचना है। सिद्धकट चैत्यालय नसियाँ जी के नाम से प्रसिद्ध इस मन्दिर का निर्माण सेठ मूलचन्द सोनी ने सन् 1865 में करवाया था। उन्हीं के नाम पर इसे सोनीजी की नसियाँ कहा जाता है।
मार्गदर्शन-महान चमत्कारी प्रथम दादागुरु आचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी का समाधि स्थल श्री जिनदत्त सरि
अजमेर शहर के विनय नगर क्षेत्र में स्थित है। रेल्वे स्टेशन तथा बस स्टैण्ड से यह स्थल । 2 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बस स्टैण्ड एवं स्टेशन से यहाँ आने हेतु रिक्शा, ताँगा, टैक्सी आदि सभी साधन उपलब्ध हैं।
पेढ़ी : परिचय-इस पावन प्राचीन तीर्थ का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। दादागुरु श्री जिनदत्त
श्री जिनटन श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ सूरि जी का जन्म सन् 1076 में गुजरात के धोलका नगर में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की अल्पायु श्री जिनदत्त सूरि दादावाड़ी में ही दादा गुरु संयम पथ पर अग्रसर हुए थे। अपनी अध्यात्मिक शान्ति, संयम व तपोबल विनय नगर, के प्रभाव से दादा गुरुदेव ने अनेक राजपूत शासकों को भगवान महावीर का अहिंसा का अजमर-305 001 सिद्धान्त अपनाने हेतु प्रतिबोधित किया। सन 1155 में 79 वर्ष का अवस्था में दादागरु देव फोन : (0145) 423530%; अजमेर में स्वर्गलोकवासी हुए। उनके तपोबल के प्रभाव से अन्तिम समय में उनको ओढ़ाई
620357 गई चादर, चोलपट्टा व मुंहपत्ती स्वत: बिना जले अग्नि से बाहर आ गिरी, जिन्हें आज भी
(भोजनशाला) जैसलमेर के ज्ञान भण्डार में एक कांच के सुरक्षित पेटिका में देखा जा सकता है। मन्दिर में प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी के पगलियाजी एवं सप्त धातु निर्मित प्रतिमा है। प्रभु विमलनाथ जी की मूर्ति भी है। तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा सुन्दर नैसर्गिक
वातावरण में स्थित यह तीर्थ मन में आनन्द एवं शान्ति प्रदान करता है। ठहरने हेतु व्यवस्था-दादावाड़ी में यात्रियों के ठहरने हेतु सुव्यवस्थित धर्मशाला तथा
भोजनशाला की सुविधा है। ठहरने हेतु यहाँ 52 कमरे हैं। ओढ़ने बिछाने हेतु सभी सामान उपलब्ध हैं। कार, बस आदि पार्किंग हेतु समुचित जगह उपलब्ध है। मन्दिर एवं धर्मशाला की सम्पूर्ण व्यवस्था श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा की जाती है। भोजनशाला में नि:शुल्क भोजन व्यवस्था है। इसका संचालन श्री जिनदत्त सूरि मण्डल दादाबाड़ी द्वारा किया जाता है।
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