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राजस्थान
जहाज मंदिर, मांडवला
पेढ़ी: श्री जिनकांतिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट जहाज मंदिर, पो. मांडवला, जि. जालोर-343 042 (राजस्थान) Website : www.jainjahajmand ir.com टैलीफैक्स : (02973) 56107,56284
जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शांतिनाथ भगवान। मार्गदर्शन : मांडवला गाँव राजस्थान राज्य के पश्चिमी क्षेत्र जालोर जिले में बसा हुआ है। जालोर
से, नाकोड़ाजी जाते हुए, 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित बिशनगढ़ से 5 कि.मी. सायला रोड पर स्थित है। जोधपुर से इसकी दूरी 160 कि.मी., नाकोड़ाजी से 85 कि.मी., फालना से
90 कि.मी., अहमदाबाद से लगभग 400 कि.मी. है। परिचय : जहाज के आकार में बना यह मंदिर स्थापत्य, कल्पना-प्रवणता और सौन्दर्य की दृष्टि
से विश्व का पहला जिनमंदिर है। 30 जनवरी 1999 को इस भव्य और कलात्मक जिनालय की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा पूज्य गुरुदेव श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के सानिध्य में सानन्द संपन्न हुई। विश्व के इस पहले जहाज मंदिर का संपूर्ण निर्माण कार्य मकराणे के धवल उज्ज्वल पाषाण में संपन्न हुआ है। यह मंदिर भूतल से 56 फीट ऊँचा है। मूलनायक श्री शांतिनाथ प्रभु की प्रतिमा उनके स्वर्ण वर्ण के आधार पर पंचधातु की बनी है और उस पर सोने की गहरी परत चढ़ी है। परमात्मा के परिकर का निर्माण पंचधातु में हुआ है और इसका शिल्प अपने आप में अद्वितीय और अन्यत्र अनुपलब्ध है। मूलनायक परमात्मा के दायीं ओर आदिनाथ एवं बायीं ओर वासुपूज्य प्रभु की परिकर युक्त प्रतिमाएँ विराजित हैं तथा सभी प्रतिमाएँ 41 इंच ऊँची हैं। गंभारे में स्थित दो देवकुलिकाओं में सुमतिनाथ भगवान एवं महावीर स्वामी की मनोहारी प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। कोली मंडप में स्तंभन पार्श्वनाथ एवं शंखेश्वर पार्श्वनाथ की फणों सहित भव्य प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं। दादावाड़ी में मूलनायक के रूप में दादा श्री जिनकशलसरिजी की प्रतिमा. दायीं ओर के गोखले में जिनदत्तसरि. बायीं ओर के गोखले में मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी की प्रतिमाएँ विराजित की गई हैं। गुरु मंदिर में पूज्य आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी म. की 41 इंच की प्रतिमा एवं जिनहरिसागरसूरिजी एवं दर्शनसागरजी म. की चरणपादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं। बाहर रंगमंडप में अतिभव्य बनी विशिष्ट देवकुलिकाओं में दायीं ओर श्री नाकोड़ा भैरव, घंटाकर्ण महावीर की प्रतिमा एवं बायीं ओर अंबिकामाता एवं पद्मावती देवी की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। नीचे पूज्य आचार्यश्री की समाधि भूमि पर पूज्य आचार्यश्री की भव्य कलात्मक चरणपादुका प्रतिष्ठित है। इस जहाज मंदिर परिसर के मुख्य द्वार पर जैसलमेर के पीले पाषाण से निर्मित एक तीन खण्ड वाला भव्य तोरणद्वार लगा है। इस तोरणद्वार के स्तंभों का बहुत सूक्ष्मता के साथ अंकन किया गया है। इस तोरणद्वार के स्तंभों में 16 विद्यादेवी, 24 यक्ष, 24 यक्षिणी, नवग्रह, दशदिक्पाल, अष्टमंगल आदि जैन शास्त्रों में उपलब्ध हर प्रतीक का भव्य चित्रण अत्यंत कलात्मक ढंग से किया गया है। जहाज मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा के समय परमात्मा शांतिनाथ एवं पूज्य आचार्यश्री की प्रतिमाओं से 5 घंटे तक लगातार अमीझरणा हुआ था। जिसे प्रतिष्ठा पर उपस्थित हजारों
व्यक्तियों ने देखकर परम धन्यता का अनुभव किया था। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ जिनमंदिर के अलावा विशाल आराधना भवन, यात्रियों के आवास
हेत विशाल धर्मशाला, भोजनशाला आदि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ साधु साध्वी प्रशिक्षण केन्द्र, मानव सेवा केन्द्र, साधार्मिक भक्ति केन्द्र, विशाल ज्ञान भण्डार एवं अस्पताल बनाने की योजनाएँ क्रियान्वित हैं। वर्तमान में सभी गतिमान गच्छ एवं संप्रदायों का वर्गीकृत एवं मंडनात्मक इतिहास झाँकियों के रूप में प्रस्तुत करने की योजना साकार रूप ले रही है।
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