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________________ राजस्थान जयपुर लाल और गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित प्रासाद-नगरी जयपुर पर्यटकों की स्वप्न नगरी है। राजस्थान टूरिज्म द्वारा रेल्वे स्टेशन के निकट स्वागतम् होटल से नियमित पर्यटन टूर आयोजित किया जाता है। इस टूर के माध्यम से शहर परिभ्रमण किया जा सकता है। यहाँ टैक्सी आदि की भी घूमने हेतु व्यवस्था है। जैन तीर्थ परिचायिका प्रथम टूर : सुबह 8.00 से अपराह्न 1.00 दिन के 11.30 से अपराह्न 4.30 और अपराह्न 1.30 से सायं 6.30 तक हवा महल, सिटी पैलेस, म्यूजियम, आब्जरवेटरी, सेण्ट्रल म्यूजियम और आमेर का महल दिखाने की व्यवस्था है। द्वितीय टूर : सुबह 7.00 बजे यह टूर शुरू होता है और दिन भर की यात्रा में जयपुर और नाहरगढ़ दिखा लाता है। तृतीय टूर : रविवार व छुट्टियों के दिन इस टूर में भाग लेकर जयपुर और रामगढ़ देखा जा सकता है। यह यात्रा सुबह 10.00 बजे शुरू होती है । सिटी पैलेस (जन्तर-मन्तर ) हवा महल आसपास स्थित है, पैकेज टूर के दौरान समयाभाव के कारण इन्हें मन भर कर नहीं देखा जा सकता। हवा महल के दाहिने जौहरी बाजार (आभूषण), थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर बापू बाजार (सुगंधी सामान व टेक्सटाइल वस्तुएँ), त्रिपोलिया (ताँबे व नक्काशी की वस्तुएँ) अर्थात् पुराने जयपुर के शॉपिंग सेण्टर भी घूमतेघामते देख ले सकते हैं । राजस्थान की इस प्राकृतिक व ऐतिहासिक भूमि पर स्थापत्य कला के प्राचीनतम अप्रतिम सौन्दर्य वाले मन्दिरों, गढ़ों, रानियों के जौहर व महाराणा प्रताप की वीरता से रंगी माटी का एक और अनोखा महल है सिटी पैलेस जो महल ही नहीं, एक छोटा-मोटा शहर है। इसी के उत्तर पश्चिम महल के मध्य में दुग्ध धवल सात मंजिल संगमरमरी पत्थरों के चन्द्र महल में महाराजाओं का अतीत सजीव हो उठा है। अप्रतिम सौन्दर्य, कलात्मकता, शैली व भव्यता वाले चन्द्रमहल से उत्तर में महल के बगीचे में गोविन्दजी का मन्दिर है । जयपुर का सुप्रसिद्ध व हैरतअंगेज पाँच मंजिला हवा महल सिटी पैलेस के निकट ही है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 में इसका निर्माण करवाया था । इसकी स्थापत्य शैली भी अद्भुत है। पीछे की 360 खिड़कियों से ठण्डी हवा आकर महल को शीतल करती है। इसमें बिना यंत्र के वातानुकूलन की व्यवस्था है। गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित 5 मंजिला यह महल देखने में पिरामिड जैसा लगता है। सूर्योदय के समय सूर्य की स्निग्ध किरणों से निखरे हवा महल का सौन्दर्य और भी अभिभूत कर देता है । शहर से दक्षिण रामनिवास उद्यान में जयपुर का जादूघर है। शुक्रवार को छोड़कर प्रतिदिन सुबह 10.00 से अपराह्न 4.30 बजे तक यह खुला रहता । जयपुर का चिड़ियाखाना भी रामनिवास उद्यान में ही है। खाई से घिरे इस चिड़ियाखाना में बाघ, सिंह स्वच्छन्द विचरण करते हैं । यहाँ क्रोकोडायल ब्रीडिंग फार्म है। शहर से 6.5 कि.मी. दूर 1734 में जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित नाहर गढ़ या सुन्दरगढ़ दुर्ग है। शहर से 10 कि.मी. पूर्व गलता जी है । कहा जाता है कि गलभ ऋषि ने इसी गलता में तपस्या की थी। निकट ही पहाड़ है। पहाड़ के शिखर पर मन्दिर है। शहर से 8 कि.मी. दक्षिण में आगरा रोड पर 1774 में बना सिसौदिया रानी का बाग है । मानसिंह की तृतीय पत्नी गायत्री देवी द्वारा निर्मित मोती का महल - मोती डूंगरी की भी काफी ख्याति है । शहर से 16 कि.मी. दक्षिण में जयपुर-अजमेर सड़क पर सांगानेर है । यह स्थान रंगीन छपाई एवं हाथों द्वारा निर्मित कागज के कुटीर उद्योग का केन्द्र रहा है। 1500 वीं ई. में निर्मित जैन मन्दिर समूह प्रासाद तथा अतीत का शहर आज ध्वंसावशेष में परिणत हो गया है। वर्तमान में यहाँ 10 जिनालय हैं। इनमें प्रमुख हैं मंदिर संघीजी, मंदिर अढ़ाई पेढ़ी तथा मंदिर बधीचंद्रजी । 64 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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