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राजस्थान
जैन तीर्थ परिचायिका रानी के बाग के सामने निकट ही विद्याधर जी का बाग है। जयपुर का मूल आकर्षण शहर से 11 कि.मी. उत्तर-पूर्व में जयपुर दिल्ली रोड पर आमेर या अम्बर या कछवाहा अम्बर है। राजपूत स्थापत्य शैली का एक सुन्दर नमूना है यह अम्बर प्रासाद। 1592 में महाराजा मानसिंह ने इसका निर्माण आरम्भ कराया था और लगभग 100 वर्षों के बाद सवाई जयसिंह ने इसे पूरा कराया, फिर भी इसकी चमक-दमक आज भी ज्यों-की-त्यों है। जयपुर के जोहरी बाजार में स्थित होटल लक्ष्मी मिष्ठान भंडार अपनी मिठाइयों और शाकाहारी रैस्टोरेंट हेत विशेष रूप से प्रसिद्ध है। जयपुर में स्थानकवासी, तेरापंथी श्वेताम्बर, दिगम्बर जैन समाज की बड़ी आबादी है। इनके कई पुराने तथा प्रेक्षणीय जिनमंदिर यहाँ पर हैं। घी वालों का रास्ते में दीवान बघीचंद्रजी साह का बड़ा मंदिर है, उसके छत में सोने की छपाई, खंम्बों पर कुराई अत्यन्त सुन्दर ढंग से की गयी है। घी वालों का रास्ता, हल्दीयों का रास्ता, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, चौकडी आदि भागों में प्रेक्षणीय दिगम्बर जैनमंदिर हैं। यहाँ ठहरने के लिए निम्नलिखित धर्मशालाएँ हैं1. बनजी ठोलिया की धर्मशाला-घी वालों का रास्ता, 2. टाँक धर्मशाला, 3. बैराठिया धर्मशाला, 4. पुंगलिया धर्मशाला, स्टेशन रोड आदि स्थानों पर भी धर्मशालाएँ हैं। बरखेडा तीर्थ-जयपुर के निकट ही बरखेडा में भगवान ऋषभदेव का प्राचीन जिनालय है। जिसका जीर्णोद्धार आचार्य श्री विजय नित्यानन्द सूरि द्वारा 1999 में ही कराया गया। विशाल जैन मन्दिर दर्शनीय है। इसमें श्री शान्तिनाथ भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान, पुण्डरीक स्वामी, श्री सीमधर स्वामी आदि की भव्य प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। राजस्थान की राजधानी होने तथा विश्व मानचित्र पर भारत के प्रमुख पर्यटन शहर के रूप में होने के कारण यहां ठहरने हेतु अनेकों होटल, धर्मशालाएँ विभिन्न दरों पर उपलब्ध हैं।
आमेर
मार्गदर्शन : जयपुर से 11 कि.मी. उत्तर पूर्व में आमेर दुर्ग स्थित है। आमेर कछवाहा अम्बर के
नाम से भी जाना जाता था। कछवाहा राजूपतों की यह प्राचीन राजधानी थी। राजपूत शैली में निर्मित यहाँ महल अपनी चमक दमक हेतु प्रसिद्ध है। सुन्दर कलात्मक जनाना महल, मनोरम जय मन्दिर, सुहाग मन्दिर, सुख मन्दिर अत्यन्त आकर्षित करते हैं। इस महल के निकट ही जयगढ़ का किला है। जो प्रातः 9 बजे से 4.30 बजे तक पर्यटकों हेतु खुला रहता है। यहाँ निम्न जिनालय विशेष दर्शनीय है। मन्दिर सावंला जी में भगवान नेमिनाथ जी की चमत्कारिक प्रतिमा के कारण यहाँ की विशेष मान्यता है। मन्दिर संघी जी छोटी सी पहाड़ी पर बसा यह मन्दिर प्राचीन है। नासियां भगवान चन्द्र प्रभु यहाँ भगवान नेमिनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा अत्यन्त मनभावन है। मन्दिर संकट हरण पार्श्वनाथ-इस मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की 7 फुट पद्मासनस्थ प्रतिमा है। कीर्तिस्तंभ की नासियाँ : आमेर से 2 कि.मी. दर 18वीं सदी में अन्त में निर्मित यह नासियाँ है।
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