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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार इस ज्ञान भण्डार में प्राचीन ताड़पत्रों, भोजपत्रों, कागजों तथा काष्ठ-पट्टिकाओं पर लिखे विभिन्न प्राचीन भाषाओं के ग्रन्थ, चित्र व प्रतिमाएँ संग्रहित हैं। इस ज्ञान भण्डार की स्थापना जिनभद्रसूरिजी महाराज ने 16वीं शताब्दी में की थी। ज्ञान भण्डार में दादा कुशलसूरिजी की चोल पट्टी रखी है। यह पट्टी उनके दाह संस्कार के समय इनके साथ जली नहीं थी। यहाँ पर कुल 8 जिनमंदिर हैं। यहाँ के मंदिर पीले पत्थर के हैं। मंदिरों के साथ-साथ यहाँ के प्राचीन ग्रंथभंडार देशविदेशों में मशहूर हैं। ताड़पत्र तथा कागज पर हस्तलिखित ग्रंथों का प्रचुर संग्रह है। श्री पार्श्वनाथ भगवान मंदिर के नीचे तलघर में प्रथम दादागुरु श्री जिनदत्त सूरी जी म. की 800 वर्षों से भी प्राचीन चादर, मुँहपत्ती और चोल पट्टे सुरक्षित हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरुदेव के अग्निसंस्कार के समय ये वस्तुएँ दिव्यशक्ति के कारण सुरक्षित रह गयीं। ज्ञानभंडार में स्फटीक की मूर्तियाँ, सोने-चाँदी जड़े हुए चित्र रखे हुये हैं। सभी मंदिरों की शिल्पकला इतनी सुन्दर है कि वे कला के बेजोड़ नमूने माने जाते हैं। तोरण, नर्तकीयाँ, स्तंभों की नक्काशी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। ठहरने की व्यवस्था महावीर भवन एवं जैन भवन में भी है। दर्शनीय स्थल : जैसलमेर भारत के थार (मृतक आवास) के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ चारों ओर बालू ही बालू नजर आती है। यह शहर सुनहरा नगर के नाम से प्रसिद्ध है। 1156 में रावल जैसल ने लोद्रवा से राजपाट यहाँ लाकर शहर की स्थापना की। इसके संस्थापक जैसल के नाम पर ही शहर का नाम जैसलमेर पड़ा है। लोद्रवा के रास्ते 6 कि.मी. जाने पर मरुभूमि में मरु-उद्यान अमर सागर व जैन मन्दिर हैं। लोद्रवा में किंवदंतियों से घिरे राजप्रासाद मायामहल के ध्वंसावशेष आज भी मूमल-महेन्द्र की प्रेम कहानियाँ सुनाते हैं। यह प्रासाद अनुपम कारीगरी व सौन्दर्य का प्रतीक है। यहाँ जैन मन्दिर में कल्पतरु वृक्ष है। जहाँ मनोकामना की पूर्ति के अलावा भाग्यवान पर्यटक हर साँझ खाई से निकल कर नागराज के दूध पीने के चमत्कारिक दृश्य को देख सकते हैं। जैसलमेर से लोद्रवा के लिए बस सेवा भी है। लोद्रवा के मार्ग में ही जैसलमेर से 7 कि.मी. दूर बड़ाबाग की प्रसिद्धि पत्थर की सुन्दर कलाकृतियों के लिए है। उस मार्ग में 9 कि.मी. जाने पर 3025 वर्ग कि.मी. में पसरे डेजर्ट नेशनल पार्क में बास्टर्ड पक्षी, चिंकारा, गैजल, सियार आदि देख लिए जा सकते हैं। पार्क में प्रवेश के लिए अनुमति व प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। नेशनल पार्क में ठहरने की भी व्यवस्था है। सर्दी की अधिकता होने के बावजूद यात्रा का मनोरम मौसम अक्टूबर से मार्च है। राजस्थान के हर शहर की भाँति जैसलमेर भी दुर्ग के आसपास ही बसा है। निर्माण काल के हिसाब से यह द्वितीय प्राचीनतम दुर्ग है और चित्तौड़ के बाद इसी का नाम आता है। दुर्ग के चार दरवाजे हैं। दुर्ग जैसलमेर के पीले पाषाणों से निर्मित है। दुर्ग में 12-15वीं शताब्दी के 8 जैन और 4 हिन्दू मन्दिर हैं-देव विग्रह, नृत्यरता मूर्ति तथा पौराणिक आख्यानों से अलंकृत हैं ये मन्दिर। 18वीं शताब्दी की पाँच तल्ले वाली पटवों की हवेली की कला उत्कृष्ट अनुपम है पटवों की हवेली की कला उत्कष्ट अनपम है। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में तत्कालीन एक प्रधानमंत्री का मकान नथमलजी की हवेली दो कारीगर भाइयों की कला-नैपुण्य का उत्कृष्ट नमूना है। जैसलमेर नगर के मध्य स्थित सालिम सिंह की हवेली सबसे ऊँची हवेली है। इसकी नक्काशी दर्शनीय है। जैसलमेर नगर में नगर का प्रमुख जलस्रोत गड़सीसर (गड़ीसर) सरोवर स्थित है। इस कृत्रिम सरोवर का निर्माण जैसलमेर के रावल गड़सीसिंह ने 1396 वि. सं. (ई. 1340) के लगभग कराया था। यहाँ पर कई शिव मन्दिर, छतरियाँ, बगेचियाँ तथा भव्य टीलों की प्रोल बनी हुई है। प्रात:काल एवं संध्याकाल में इस सरोवर के मध्य बने जल मण्डपों की शोभ देखते ही बनती है। Jahaducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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