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राजस्थान
जैन तीर्थ परिचायिका | ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर नूतन विशालतम धर्मशाला बनी हुई है। जिसमें सभी आधुनिक
सुविधायें उपलब्ध हैं। यहाँ अति व्यवस्थित भोजनशाला का भी प्रबंध है। भाता आदि हेतु भी यहाँ पूर्ण व्यवस्था है।
जालोर से लगभग 55 कि.मी. दूर पूर्वस्थित भुति गाँव एक सम्पूर्ण साधन संम्पन्न गाँव है। भती गाँव तथा
फालना, जालोर, पाली, रानी आने जाने हेतु यहाँ नियमित बस सेवा उपलब्ध है। कवला गाँव यहाँ दो जैन मंदिर हैं एक श्री महावीर स्वामी का तथा दूसरा आदिनाथ भगवान का। मंदिरों की प्रतिष्ठा श्रीमद विजय भूपेंद्र सूरीश्वर जी के कर-कमलों द्वारा संवत् 1083 में सम्पन्न हुई थी। भगवान महावीर का मंदिर छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है। वहाँ तक पहुँचने के लिए 50-60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। चारों ओर का वातावरण अत्यंत रमणीक है। मंदिर में भगवान महावीर की चित्ताकर्षक प्रतिमा बरबस ही मंत्र मुग्ध सा कर देती है। इसी मंदिर में श्रीविजय राजेन्द्र सूरीश्वर जी की अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावशाली मूर्ति स्थापित की गयी है। भगवान आदिनाथ का मंदिर बाजार में नीचे ही स्थित है। अति आकर्षक और मनभावन इस मंदिर में प्रभु दर्शन का लाभ उठाकर लोग आनन्दित हो उठते हैं। गाँव में भगवान शिव का एक बड़ा मन्दिर तथा हनुमान एवं श्री कृष्ण के तीन चार मन्दिर हैं। भुति से 2 कि.मी. दूर गाँव कवला स्थित है। यहां की पहाडियों में मूल्यवान ग्रेनाइट पत्थर प्राप्त होने के कारण हजारों श्रमिकोंकी रोजी रोटी का यहाँ साधन है। यहाँ का सम्भवनाथ स्वामी का मन्दिर अत्यंत प्राचीन कहा जाता है। इनमें से एक मूर्ति वि. सं. 111 की है। इस प्राचीन तीर्थ पर प्रतिवर्ष कार्तिक एवं चैत्र पूर्णिमा पर मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ भोजन आदि की व्यवस्था सदैव रहती है। धर्मशाला का भी अच्छा प्रबन्ध है। कवला आने के लिए फालना, रानी, जवाई बाँध स्टेशन से बस व जीप की सुविधा उपलब्ध है।
जालौर जिलान्तर्गत, भीनमाल तहसील में बसा यह गाँव भीनमाल से रामसीन जाने वाली मुख्य तवाव
सड़क पर तथा भरूड़ी गाँव से पहले एवं धासेड़ी गाँव के बाद उत्तर दिशा में मोदरा जाने वाली मुख्य सड़क के निकट लगभग 3 से 4 कि.मी. की दूरी पर पर्वतराज की गोद में प्राकृतिक छटा एवं विशेषता लिए हुए बसा है। जनश्रुति के आधार पर पहले यह गाँव लगभग 2 कि.मी. दूर वाड़ी में था। किंवदन्ती यह भी है कि लगभग सात सौ वर्ष पूर्व इस गाँव का निर्माण हुआ था। जैन मंदिर का शिलान्यास इस गाँव में संवत् 1958 में हुआ। इस मंदिर के निर्माण में जैन भाईयों ने स्वयं श्रमदान किया जो सवंत 1972 में पूर्ण हुआ। संवत् 1997 में भगवान श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रुप में प्रतिष्ठित की गई। मंदिर के पीछे भाग में दुओं का पेड़ लगभग एक हजार वर्ष से भी पुराना माना जाता है। यहाँ पर विशाल नूतन धर्मशाला, आयंबिल भवन, भोजनशाला एवं उपाश्रय की सुविधा उपलब्ध है।
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