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राजस्थान
जैन तीर्थ परिचायिका मंदिर जब कब्जे में मिला, तब वह जीर्ण अवस्था में था। परिसर के जैनसंघ ने यहाँ भव्य मंदिर की योजना बनायी और करोड़ों रु. की लागत से मंदिर का निर्माण किया। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा 14 फुट ऊँची है। कायोत्सर्ग अवस्था में इतनी ऊँची श्वेताम्बर प्रतिमा अन्यत्र कम देखने को मिलती है। मूलनायक के दोनों ओर सफेद संगमरमर की साड़े चार फुट ऊँची श्री शान्तिनाथ भ. और श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाएँ हैं। श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा इतनी तेजस्वी है, ऐसा प्रतीत होता है कि रत्नों से बनायी गयी है। संवत् 2026 में मंदिर की प्रतिष्ठा हुई। मूलनायक प्रभु प्रतिमा अत्यन्त प्रभावी होने के कारण यहाँ भक्तगण
बड़ी संख्या में आते हैं। श्री जिनकुशलसूरि
___ ठहरने की व्यवस्था : तीर्थ स्थल पर अनेक धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला का भी प्रबन्ध है। दादावाड़ी
आलोर में भी पेढ़ी ने एक विशाल धर्मशाला का निर्माण किया है धर्मशाला ऑफिस से फोन
द्वारा जीप, मिनीबस व अन्य वाहन उपलब्ध हो सकते हैं। पेढ़ी: श्री जैन श्वे. खरतरगच्छाचार्य श्री जिनकुशलसूरि दादावाड़ी श्री जिनकुशल गुरु
भारतवर्ष में दादा श्री जिनकुशलसूरिजी की प्रथम खड़ी प्रतिमा दिनांक 2-5-82 वि. सं. दादावाड़ी ट्रस्ट उन्हेल (नागेश्वर),
2039 वैशाखसुदी 10 को प. पू. श्री चंद्रप्रभा श्रीजी म. सा. की प्रेरणा से यहाँ प्रतिष्ठित की रेल्वे स्टेशन, चौमहला,
गयी। यह दादावाड़ी श्री नागेश्वर तीर्थ के निकट में ही स्थित है। यह प्रतिमा अत्यन्त जि. झालावाड़-326 515
मनमोहक एवं चमत्कारिक है। यहाँ ठहरने हेतु उत्तम व्यवस्था उपलब्ध है। उपाश्रय की फोन : (07410) 40721 सुविधा भी यहाँ है।
चाँदखेड़ी
मूलनायक : भगवान आदिनाथ जी।
मार्गदर्शन : झालावाड़-बारां सड़क मार्ग पर खानपुर से 2 कि.मी. दूर कोटा से 115 कि.मी.
दूर तथा झालावाड़ से 42 कि.मी. दूर स्थित है चाँदखेड़ी अतिशय तीर्थ क्षेत्र । यहाँ से बीनाकोटा रेल लाइन पर अटरू स्टेशन 60 कि.मी. व पश्चिमी रेल्वे पर झालावाड़ रोड स्टेशन 72 कि.मी. दूर है। इन्दौर से जयपुर व कोटा जाने वाले मार्ग से भी झालावाड़ पहुँचा जा सकता है।
परिचय : औरंगजेब के शासन काल में कोटा महाराजा किशोरसिंह के दीवानशाह बिशनदास
बघेरवाल ने इस क्षेत्र का निर्माण करवाया था। सन् 1686 का प्रतिष्ठित विशाल मन्दिर भूगर्भ में है। इस स्थान के चमत्कारों का वर्णन मिलता है। भगवान आदिनाथ जी की प्रतिमा लगभग 2 मीटर ऊँची व पौने दो मीटर चौड़ी है।
क्षेत्र के प्रवेश द्वार में घुसते ही एक अहाते में जिन मन्दिर है जिसमें अनेक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ एक नवीन समवसरण मन्दिर है। चैत्र कृष्ण 5 से 9 तक वार्षिक मेले का आयोजन किया
जाता है। ठहरने की व्यवस्था : सर्व सुविधा सम्पन्न एक विशाल धर्मशाला भी है। मंदिर के चारों ओर
धर्मशालाएँ हैं।
Jalu
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