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[ xxix ] ३. ध्यान वृत्ति शोधन-एक सफल प्रयोग
२०७-२३६ ध्यानयोग, ध्यान शब्दार्थ, भावना, अनुप्रेक्षा, चिन्ता, चित्त के भेद, ध्यान की परिभाषा, ध्यान का महत्त्व, ध्यान के प्रकार, आर्तध्यान, आर्तध्यान के कारण, आर्तध्यान के लक्षण, आर्तध्यान के स्वामी, आर्तध्यान में लेश्या, आर्तध्यान का फल । रौद्रध्यान, रौद्रध्यान के कारण, रौद्रध्यान के स्वामी तथा लक्षण, रौद्रध्यान में लेश्या । धर्मध्यान, धर्मध्यान का स्वरूप, ध्यान भावना, दर्शन भावना, ध्यान का स्थान, ध्यान का काल, ध्यान का आसन, ध्यान का स्वामित्व, धर्म ध्यान की सामग्री, ध्यान का आलंबन, ध्यान का विषय, आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय, संस्थानविचय, धर्मध्यान के अधिकारी, ध्याता के ९ प्रकार, धर्मध्यान की अनुप्रेक्षा, धर्मध्यान की लेश्या, धर्मध्यान के बाह्य और अन्तरंग चिह्न, धर्मध्यान का फल, ध्येय तत्त्व, सालंबन ध्यान, निरालंबन ध्यान। शुक्ल ध्यान, शुक्ल ध्यान का लक्षण, शुक्ल ध्यान के प्रकार, पृथकत्व- वितर्क-सविचार, एकत्ववितर्क-अविचार, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती- ध्यान, समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती, ध्यातव्य द्वार, शुक्ल ध्यान के ध्याता, शुक्ल ध्यान की लेश्या, शुक्ल ध्यान का फल, शुक्ल ध्यान के अधिकारी, केवली और ध्यान, अयोगी और ध्यान । आंतरिक शोधन समत्व की प्रयोगात्मक विधि से
२३७-२४१ समत्त्व योग, समता शब्दार्थ, समत्त्व योग का लक्षण । ५. वृत्तियों के प्रभाव से आवेगों और शारीरिक प्रक्रियाओं में परिवर्तन
२४२-२५७ वृत्ति संक्षय योग, वृत्तियों का प्रभाव आवेगों से, ग्रंथियों से वृत्ति संक्षय, ग्रंथिभेद, जपयोग और मन्त्र योग का शरीर, इन्द्रिय वृत्ति और मन पर
प्रभाव, मन्त्र से वृत्ति संक्षय, कुंडलिनी योग । सहायक ग्रन्थों की सूची
२५८-२६८