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आकृति नं. १६
यथाप्रवृत्तिकरण:
थिभेद की प्रकिया
उपशम श्रेणी
क्षपक श्रेणी अनिवृत्तिकरण
८, ९, १०, १२,
। गुणस्थान कैवल्य
व्यवहार राशि
उपशम सम्यक्त्व की
प्राप्ति
अव्यवहार राशि
मोक्ष
७० क्रोडा कोडी । मंद मिथ्यात्व सागरोपम की । तीनों करण स्थिति वाले के पूर्व की मोहनीय कर्म की । विशुद्धि प्रगाढ़ मिथ्यात्व । १ । की स्थिति अंधकार | अंतर्मुहूर्त युक्त अनन्त अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि ।
मिथ्यात्व का अपूर्व करण । यथाप्रवृत्तिकरणं से ग्रंथिभेद होता है और सम्यकत्व । अंतिम चरण अपूर्व स्थितिघात । की प्राप्ति होती है। सम्यकत्व प्राप्त होने के पश्चात्
प्रथम अपूर्व करण से श्रेणी पर आरूढ़ होता है और यथाप्रवृत्तिकरण । गुण श्रेणी । द्वितीय अपूर्वकरण से क्षपक श्रेणी से आयोज्यकरण
गुण संक्रमण । समुद्घात् .कैवल्य की प्राप्ति शैलेशीकरण और अंत में । स्थिति बन्ध । मोक्ष की प्राप्ति करता है।
योग-प्रयोग-अयोग/२५१