Book Title: Yog Prayog Ayog
Author(s): Muktiprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 298
________________ योग-प्रयोग-अयोग/२५३ १. भाष्य जप-अन्य जिसे सुन सके, न अतिशीघ्र न अति विलम्बित किन्तु माध्यस्थ श्वासोच्छवास का निरोध करके बाह्य या आभ्यंतर कुंभक में यह जाप होता २. उपांशु जप-उपांशु जप अन्तर्जाप से होता है.। इसे अन्य कोई सुन नहीं सकता। इस जप से आंतरिक क्रियाशीलता की स्थिति होती है। जैसे कपड़े का मैल घर्षण से दूर होता है, बर्तन राख से, कचरा झाडू से स्वच्छ होता है। ३. मानस जप-मानस जप केवल मनोवृत्ति से ही किया जाता है वह स्वयमेव होता है। इसे अजपाजाप भी कहते हैं, चित्त को एकाग्र करने का यह सहज उपाय है। इस जप से वृत्तियों का निरोध होता है। जप शास्त्रों का निर्देश मातृका न्यास से निष्पन्न होता है । मातृका स्वयं ज्ञानशक्ति वाहिनी है। ज्ञानशक्ति का उन्मीलन कराने वाली वैरवरी, मध्यमा, पश्यन्ती और परा ये चार वाणी हैं । १. वैरवरी-व्यक्त अकारादि वर्ण - समूह २. मध्यमा-मंत्र रूप ३. पश्यन्ती-अव्यक्तवाणी ४. परा-परम अव्यक्तवाणी यहाँ मध्यमा और पश्यन्ती में ही मंत्र, तंत्र और यंत्र का विधान होता है। स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण से मनोग्रंथियों का स्तर खुल जाता है ध्वनि तरंगें, आकृतियाँ उभरती हैं । फलतः मन का संतुलन, रोग निवारण तथा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है। मन्त्र को वाणी में, वाणी को मन में, मन को प्राण में, प्राण को तैजस में, और तैजस को चैतन्य में लीन करना विनियोग या विलीनीकरण है। इस प्रकार यन्त्र सिद्ध होने पर फलित होता है। मन्त्र से वृत्ति संक्षय जब हम शब्द को मन्त्र की भूमिका पर लाते हैं तो सारे परमाणुओं में प्रकंपन का. प्रारम्भ हो जाता है। मन्त्र परमाणुओं का अजस स्रोत सूक्ष्म शरीर में शक्ति के रूप में पैर से सिर तक घूमता है और अपनी विद्युत ऊर्जाओं को तरंगित करता है। ___ प्रत्येक मानव के चारों ओर आभामंडल होता है । मन्त्र ऊर्जा से ये आभामंडल शुद्ध हो जाता है, सुषुम्ना जागृत हो जाती है और शरीर में रसायन परिवर्तन हो जाता है। उत्तेजित वृत्तियाँ शान्त हो जाती हैं और साधक निष्काम, निर्विकार और विराग प्रवृत्ति में निवृत्ति रूप को धारण करता है। फलतः कषायों का उपशमन प्रारम्भ होने

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