________________
२५६ / योग-प्रयोग-अयोग
ॐ
तेजोलेश्या (कुंडलिनी) को प्राप्त करने वाला साधक शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक तीनों प्रकार से सहज़ आनन्द की अनुभूति पाता है। अतीन्द्रिय ज्ञान की उपलब्धि होने का प्रमाण जब साधक भावात्मक रूप से जिस (मैगनेटिक फील्ड) क्षेत्र का निर्माण करता है वही क्षेत्र जागृत हो जाता है। उस क्षेत्र को ही चक्रस्थान कहा जाता है। इस प्रकार कुण्डलिनी कहो, तैजस शरीर कहो या तैजस लब्धि कहो एक ही है, भिन्न नहीं उसी से वृत्तियाँ शान्त होती हैं और ज्ञान जागृत होता है ।
. कोष्ठक नं: २६ विभिन्न दर्शनों में कुण्डलिनी शक्ति विभिन्न नाम से प्रसिद्ध हैक्रमांक दर्शन का नाम
कुण्डलिनी के पारिभाषिक शब्द १. शाक्त दर्शन
शक्ति २. शैव दर्शन
चित्ति ३. योग दर्शन
कुण्डलिनी ४. सांख्य
प्रकृति परा प्रकृति पाराशर
ब्रह्म ६. बौद्ध
बुद्धि, तारा ७. जातिवादी
निरूपाधि महासत्ता ८. द्रव्यवादी
उपाधिरहित केवल ९. सूर्यपूजक
महाराज्ञी १०. चार्वाक
आज्ञा ११. पाशुपत
शान्ता १२. ब्रह्म उपासक १३. वेदान्ती
गायत्री १४. वज्ञनन
कोष्ठक नं: २७ मलेः कुंडलिनीः का प्रतीक जो जैन ग्रन्थों के प्रारम्भ में प्रतीत होता है वह निम्नानुसार हैअनु- ग्रंथ ग्रंथ का नाम
केटलोग, प्रतीक प्रयोग क्रम क्रमांक
पृष्ठ का आलेखन संख्या १. ४४९ निशीथसूत्र चूर्णिविंशोदेशक व्याख्या २३
श्रद्धा
मोहिनी