Book Title: Yog Prayog Ayog
Author(s): Muktiprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 299
________________ २५४ / योग-प्रयोग-अयोग लगता है। आधि, व्याधि और उपाधि से समाधि प्राप्त होने लगती है। तनाव से मुक्त होने का, भौतिक इच्छाओं को परास्त करने का सहज उपाय है मंत्र की साधना। स्मृति, कल्पना और चिन्तन के द्वार पर यदि मन्त्र शक्ति का पहरा है तो बहिर्मुखता से अन्तर्मुखता में प्रवेश सहज होता है । मन्त्र अचिन्त्य शक्ति है । शब्दात्मक शक्ति से अर्थात्मक, अर्थात्मक शक्ति से भावात्मक और भावात्मक शक्ति से अचिन्त्यात्मक शक्ति होती है। मन्त्र का पिंडस्थ, पदस्थ रूपस्थ के रूप में ध्यान होता है, रूपातीत ध्यान में मन्त्र और साधक दोनों का अभेदीकरण हो जाता है। शब्द, ध्वनि और विद्युत ऊर्जा तीनों एक हो जाते हैं, तब मन्त्र की शक्ति जागृत होती है और मन्त्र जब रूपस्थ ध्यान से रूपातीत हो जाता है तब साधक शरीर के बाह्य आवरण से पर होकर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करता है। आत्मा और शरीर का भेद ज्ञान होने का प्राथमिक माध्यम मन्त्र है, मन्त्र शक्ति सूक्ष्म ध्वनि है। यदि इन सूक्ष्म ध्वनि से बिना शस्त्र ऑपरेशन हो सकते हैं, हीरे जैसा कठोर रत्न काटा जाता है, पारे और पानी का मिश्रण हो सकता है, इत्यादि अनेक कार्य ध्वनि से होते हैं तो मन्त्र शक्ति की ध्वनि से भेदज्ञान की प्राप्ति होना सहज है। मन्त्रों में नमस्कार महामन्त्र आगम में चौदह पूर्व का सार माना जाता है। इसी मन्त्र के प्रयोग से साधक अयोग साधना को सफल करने में समर्थ होता है। आकृति नं. १८ आभा मंडल नमो सिद्धाणं सिद्ध-बाल सूर्यवत् देदीप्यमान/ रक्त वर्ण-पंचाक्षरी मन्त्र' सहजात्म आनन्द कीअनुभूति तत्त्व-व्योम-जल-पृथ्वी-जल. नमो अरिहंताण अरिहंत-पूर्णिमा के चन्द्रवत श्वेतवर्ण सप्ताक्षरी मन्त्र-प्रमाद, मूर्छा और अशान्ति के क्षयोपशम उपशम और क्षय के लिए। तत्त्व-व्योम-वायु-अग्नि नमो आयरियाणं । आचार्य-मध्यान्त सूर्यवत तेजस्वी पीत वर्ण-सप्ताक्षरी मन्त्र बौद्धिक विकास का साक्षात्कार तत्त्व-व्योम, वायु नमो | उवज्झायाणं । उपाध्याय-दिव्य तेजस्वी हरा वर्ण सप्ताक्षरी मन्त्र तनाव मुक्ति चित्तशान्ति, प्रसन्न प्रतिपल तत्त्व, __व्योम, पृथ्वी, जल . _ नमो लोए खव्व साहणं साधु -- दिव्य तेजस्वी, कृष्ण वर्ण, नपाक्षरी मंत्र.) साधना में संलग्न समर्थ योगी तत्त्व - व्योम, पृथ्वी, वायु, जल

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