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२२८ / योग-प्रयोग-अयोग
आकृति नं. १२ वायवी धारणा
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वायवी धारणा में संलग्न मुनिराज अग्नि धारणा में कर्मों को भस्म कर राख बने हुए देखने के बाद पवन धारणा की जाती है। पवन की कल्पना के साथ मन को जोड़ा जाता है। योगी सोचता है खूब जोर की हवाएँ चल रही हैं, उसमें आठ कर्मों की राख उड़ रही है; नीचे हृदय कमल सफेद या उज्ज्वल हो गया है और आत्मा पर लगी राख सब हवा के झोंके से साफ हो रही है।