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५. वृत्तियों के प्रभाव से आवेगों और शारीरिक प्रक्रियाओं में परिवर्तन
१. वृत्ति रूपान्तरण से रासायनिक परिवर्तन, २. आवेगों के प्रभाव से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक परिवर्तन
स्नायुतन्त्र पर, ग्रंथितन्त्र पर, नाड़ीतन्त्र पर वृत्तियों का प्रभाव ३. अंतःस्रावी ग्रंथियों पर होने से हृदय, गुर्दे, फेफड़े, धमनी, कोशिकाएँ,
नाड़ी आदि में परिवर्तन । ४. योगियों की भाषा में ग्रंथियों का स्थान ही चक्रों का स्थान है
१. जपयोग २. मन्त्रयोग ३. कुंडलिनी योग
वृत्ति संक्षय योग वृत्ति संक्षय योग में 'वृत्ति-संक्षय-योग-प्रयोग, वृत्तियों को क्षय करने के अनेक प्रयोग विद्यमान हैं। इन प्रयोगों द्वारा विकास होने पर अनुभूति की पृष्ठभूमि पर अंकित होना आसान हो जाता है । वृत्तियों को रूपान्तरित करने का सबसे बड़ा प्रयोग है अध्यात्म, भावना, ध्यान, समत्व आदि योग। इन योगों द्वारा अनन्त काल से आवर्त में घिरा हुआ मानव वृत्तियों से मुक्त होने में समर्थ होता है। अतः वृत्ति क्या है उसे जानना भी आवश्यक है।
प्रत्येक प्राणियों को स्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म तीनों शरीर में आवेगों के माध्यम से वृत्तियों का परिवर्तन होता रहता है। सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित सूक्ष्म शरीर के इलेक्ट्रॉन स्थूल शरीर के इलेक्ट्रॉन से अधिक तीव्र होते हैं, अतः उसकी प्रवृत्ति अनिन्द्रिय होती है । सूक्ष्म शरीर की अनुभूति आवेगों के माध्यम से स्थूल शरीर में वृत्तियों के रूप में क्रियान्वित होती हैं जैसे -
प्यार-तिरस्कार-जहाँ प्यार होता है वहाँ तिरस्कार नहीं । जहाँ तिरस्कार होता है वहाँ प्यार नहीं। आनन्द-शोक-जहाँ आनन्द होता है वहाँ शोक नहीं। शोक- जहाँ शोक होता है वहाँ आनन्द नहीं ।