Book Title: Yog Prayog Ayog
Author(s): Muktiprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 288
________________ • योग-प्रयोग-अयोग/२४३ भय-वीरता-जहाँ भय होता है वहाँ वीरता नहीं । वीरता-जहाँ वीरता होती है वहाँ भय नहीं। इस प्रकार काम, क्रोध, मद, लोभ, क्षमा, प्रसन्नता, शान्ति, ईर्ष्या, अहं इत्यादि अनेक वृत्तियों का आवेग योग के द्वारा रूपान्तरण होता है और उसी रूप में शारीरिक और मानसिक अनुभूति पाई जाती है। प्यार, तिरस्कार आनन्द या शोक आदि आवेगो का प्रयोगात्मक सम्बन्ध स्व और पर से है। स्व की विमुखता पर का प्यार जागृत करना है और पर का तिरस्कार स्व के प्यार को सबल बनाना है । यहाँ पर का तिरस्कार निषेधात्मक रूप से स्व में प्रतिष्ठित होना है, और स्व का प्यार विध्यात्मक रूप से पर में तिरस्कार करने में समर्थ है। __ इस प्रकार इन प्रयोगात्मक आवेगों का प्रभाव स्नायु तन्त्र पर पड़ता है । जैसे-भय के आवेग से हृदय की धड़कन बढ़ जाना । शोक के आवेग से रक्त कणों का ह्रास होना । प्रसन्नता के आवेगों से वजन (वेट) बढ़ना इत्यादि बाह्य परिवर्तन होते हैं । जैसे___ दो बच्चे हैं, एक के प्रति तिरस्कार बुद्धि है और दूसरे के प्रति प्यार । तिरस्कृत बच्चा अपने आप में हीनता, निराशता, क्षुद्रता इत्यादि का अनुभव करता है। प्यार पाने वाला, प्रसन्नता, आनन्द, उत्साह और साहस आदि का अनुभव करता है। वृत्तियों का प्रभाव आवेगों से द्वेष के आवेग से-ईर्ष्या, यश की लालसा, सुख की तमन्ना, प्रतिशोध की भावना, वैर या बदला लेने की सजगता जागृत होती है। ___ भय के आवेग से-एड्रिनल ग्रंथि के स्राव होने से-दुःस्वप्न आना स्वप्न में चिल्लाना, अंधकार से भागना, मृत्यु, अपराध, अपमान, इत्यादि होने पर भय का आवेग जागृत होता है। शोक के आवेग से-रोना, पिटना, क्रोध करना, हिंसा करना इत्यादि । एक वैज्ञानिक ने फोटोग्राफी के माध्यम से आवेगों का विशेष प्रयोग किया है। उसने विद्युतीय गतिविधि द्वारा ग्राफ अंकित किया है। माली पौधों को संवारता है तब फूल प्रसन्नता का या प्यार का आवेग अनुभव करता है जब फूल तोडने का भाव करता है तब भय का आवेग जागृत होता है, जब फूल तोड़ा जाता है तव शोक का आवेग उत्पन्न होता है और माली पुनः प्यार करता है फिर भी तिरस्कार का आवेग उभरता रहता है।

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