Book Title: Yog Prayog Ayog
Author(s): Muktiprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 290
________________ योग-प्रयोग-अयोग/२४५ एकाग्रता का अभाव-सा हो जाता है, अतः वही ऊर्जा का उपयोग यदि मस्तिष्कीय विकास में किया जाय तो हमें बहुत बड़ी उपलब्धि मिल सकती है। __ मस्तिष्क शरीर का दो प्रतिशत भाग है, उसे बीस प्रतिशत ऊर्जा की आवश्यकता होती है। आवेगों का प्रतिकूल व्यवहार होने से ऊर्जा का हास हो जाता है, फलतः मस्तिष्क अपना विकास तो नहीं कर पाता किन्तु अपनी ऊर्जा भी उसी आवेगों में समाप्त कर देता है। जिससे अच्छा मेधावी, प्रचारक और प्रतिष्ठित मानव भी क्रोध के आवेग में आत्महत्या कर बैठता है। शेर का शिकार करने वाला योद्धा भी मच्छर से भयभीत हो जाता है। मच्छर काटने से होने वाला बुखार पूरे बदन को प्रायः नष्ट कर देता है। अत्यधिक हर्ष के आवेग में आकर हेमरेज या पागलपन का शिकारी बन जाता है। तीव्र शोक के आवेग से हार्टट्रबल हो जाता है इत्यादि । आवेगों की ओर ध्यान केन्द्रित होगा तो हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर में परिवर्तन होगा, वृत्तियों में परिवर्तन होगा। इस प्रकार आवेगों से लाभ भी होता है और हानि भी होती है अतः आवेगों का रूपान्तरण समत्व योग की साधना है। कोष्ठक नं. २५ वृत्तियों का आवेग तिरस्कार प्रेम भय तीव्र, मध्यम. मंद आनन्द तीव्र मध्यम मंद शोक वर्ण कृष्ण नील कापोत शान्ति वर्ण पीत्त रक्त श्वेत द्वेष रस कडुआ कषेला तीष्ट रस बमीठा, खट्टा, स्वादिष्ट राग मद स्वश, ___गंध. सुगंध क्षमा कठोर भारी उष्ण रूक्ष सरलता स्पर्श, कोमल,हलका,शीत, संतोष 1 स्निग्ध ग्रंथियों से वृत्ति संक्षय वृत्तियों के माध्यम से तथा अंतःस्रावी ग्रंथियों से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक परिवर्तन विशेष रूप में पाया जाता है । फिजियोलोजिस्ट, वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सकों आदि ने ग्रंथियों को पाने के लिए शरीर के अनेक विभाग किए और उन-उन स्थानों पर रही हुई ग्रंथियों का क्या कार्य है, उससे क्या लाभ होता है, नाड़ीतन्त्र, श्वसनतन्त्र, विचार, भाव आदि पर उसके प्रभाव से क्या परिवर्तन आता है इत्यादि खोजों का संशोधन किया है। ___ हमारे शरीर में अनेक प्रकार की वृत्तियाँ हैं इन वृत्तियों से अनेक प्रकार की इच्छाएँ उद्भवित होती हैं । इच्छाएँ भोगने पर भी अतृप्त रहती हैं, और आदत या क्रोध गंध/ दुर्गन्ध लोभ

Loading...

Page Navigation
1 ... 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314