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२२६/योग-प्रयोग अयोग
आकृति नं. १० पार्थिवी धारणा
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पार्थिवी धारणा में लीन जिनकल्पिक मुनिराज ध्येय में चित्त को स्थिर करना धारणा है। धारणा तु क्वचिद् ध्येय चित्तस्थ स्थिर बंधनम। अपने शरीर और आत्मा को पृथ्वी की पीत वर्ण कल्पना के साथ बांधना पार्थिव धारणा है। इस धारणा में मध्यलोक को क्षीर समुद्र के समान निर्मल जल से परिपूर्ण होने की कल्पना करनी है। ऐसी कल्पना से मन बड़ा ही शांत, सौम्य और शीतलता का अनुभव करता है। इस धारणा में रम जाने से स्थिरता आती है।