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१५६ / योग-प्रयोग-अयोग
दोनों का मिलकर अर्थ होता है काया की ममता का त्याग । देह का नहीं किन्तु देहबुद्धि का विसर्जन करना कायोत्सर्ग का उद्देश्य है। - कायोत्सर्ग से प्राप्त लाभ
कायोत्सर्ग से शारीरिक और बौद्धिक जड़ता दूर होती है। सप्त धातुओं में अनेक धातुओं की विशेषता विनष्ट होती है। संकल्प शक्ति दृढ़ होती है। विकल्पों से विमुक्ति होती है। अनुकूल और प्रतिकूल वातावरण में समभाव की शक्ति प्रकट होती है। मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव जागृत होते हैं। भावना और ध्यान का अभ्यास भी कायोत्सर्ग से ही पुष्ट होता है। अविचार का चिन्तन भी कायोत्सर्ग से विशुद्ध होता है। इस प्रकार देखा जाय तो कायोत्सर्ग बहुत महत्त्व की क्रिया है।
आचार्य भद्रबाहु ने कायोत्सर्ग के पांच फल बताये हैं
(१) दैहिक जड़ता की शुद्धि-श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है। कायोत्सर्ग से श्लेष्म आदि के दोष मिट जाते हैं । अतः उनसे उत्पन्न होने वाली जड़ता भी नष्ट हो जाती है।
(२) बौद्धिक जड़ता की शुद्धि-कायोत्सर्ग में चित्त एकाग्र होता है और बौद्धिक जड़ता नष्ट होती है।
(३) सुख-दुख तितिक्षा-सुख-दुख सहने की शक्ति प्राप्त होती है। (४) शुद्ध भावना का अभ्यास होता है। (५) ध्यान की योग्यता प्राप्त होती है।
६. प्रत्याख्यान आवश्यक-आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक नियुक्ति में कहा है-प्रत्याख्यान करने से संयम होता है, संयम से आसव-निरोध होता है और आसव-निरोध से तृष्णा का नाश होता है । तृष्णा के नाश से अनुपम उपशमभाव अर्थात माध्यस्थ परिणाम होता है और अनुपम उपशमभाव से प्रत्याख्यान की शुद्धि होती है। उपशमभाव से चारित्र धर्म प्रगट होता है, चारित्र धर्म से कर्मों की निर्जरा होती है और उससे अपूर्वकरण प्राप्त होता है। अपूर्वकरण से कैवल्य ज्ञान और कैवल्य ज्ञान से शाश्वत सुख रूप मुक्ति की प्राप्ति होती है ।१५ ६: योग का निरोध अयोग की पृष्ठ भूमिका पर
अभ्यास क्रम में
१४. आवश्यक नियुक्ति-गा. १५९५ १५. आवश्यक नियुक्ति-गा. ११९५