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१९६ / योग-प्रयोग-अयोग
अनुयोगद्वार सूत्र की - टीका में संस्कार और संस्कारजनित चिन्तन धारा का प्रवाह, अच्छा या बुरा जिस कार्य में परिणत होता है, उसे भावना कहते हैं ११ । इस प्रकार सूत्र के अर्थ का ध्यानयुक्त अनुस्मरण करने के पश्चात् पर्यालोचन करना भी भावना कही जाती है। इस भावना की ऊर्जा को वैज्ञानिकों ने इस निष्कर्ष पर पहुँचाया है कि ऊर्जा के छोटे कणों को क्वांटम कहते हैं । क्वांटम का मान प्रकाश की आवृत्ति के ऊपर निर्भर रहता है।
नील्स बोर ने सन् १९१३ ई. में यह दिखलाया कि यह क्वांटम सिद्धान्त अत्यन्त व्यापक है और परमाणुओं में इलेक्ट्रान जिन कक्षाओं में घूमते हैं, वे कक्षाएँ भी क्वांटम सिद्धान्त के अनुसार ही निश्चित होती हैं। जब इलेक्ट्रान अधिक ऊर्जावाली कक्षा से कम ऊर्जावाली कक्षा में जाता है तो इन दो ऊर्जाओं का अंतर प्रकाश के रूप में बाहर आता है और भावों के रूप में संयोजा. जाता है१२॥
सं. ग्रं. - लेनार्ड : ग्रेट मैन ऑव साइंस ; वाइटमैनः द ग्रोथ ऑव साइंटिफिक आइडियाज, टिडलः होट ऐज ए मोड ऑव मोशन, माखः हिस्ट्री एण्ड द रूट ऑव द' प्रिंसिपल ऑव द कंजर्वेशन ऑव एनर्जी और - ध्वनि-ऊर्जा (acoustical energy) विद्युत्-ऊर्जा (electrical energy) में परिणत होती है इसमें उच्चरित ध्वनि तरंगें एक तनु पट (diaphragm) में जिसके पीछे रखे हुए कार्बन के कण (granules) परस्पर निकल आते और फैलते हैं, इसी प्रकार भावों के तीव्र कम्पन उत्पन्न करते हैं। इससे कार्बन के कणों में प्रतिरोध (resistance) क्रमशः घटता और बढ़ता है। फलस्वरूप प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा भी कम और अधिक हुआ करती है। एक सेकेंड में साधारण रूप से भावों का कम्पन ५,००० धारा प्रति सेकेंड तक की आवृत्तियों को सुगमता से प्रेषित कर लेता है और लगभग २,५०० चक्र प्रति सेकेंड की आवृत्ति अत्यन्त उत्कृष्टतापूर्वक प्रेसित करता है। इससे भी तीव्र गति भावना की होती हैं। भावना की उपलब्धि-प्रयोग और परिणाम से
भावना की उपलब्धि के तीन पहलू हैं सम, संवेग और निर्वेद । सम अर्थात् शत्रुमित्र के प्रति समदृष्टि-जिसकी उपलब्धि में मैत्रादि चार भावनाओं का अनुसंधान रहा है। संवेग से ज्ञान प्राप्त होता है जिसके चिन्तन का आधार है अनित्यादि बारह
११. अनुयोग द्वार टीका (अभि. पृ. १५०५) १२. अल्पपरिचित सैद्धान्तिक कोश. पृ. ४५ १३. हिन्दी विश्वकोश भाग ५. प. १६५, १४. हिन्दी विश्वकोष भा. २, पृ. १९१