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२१२ / योग- प्रयोग- अयोग
सर्वज्ञत्व प्राप्त होने के पश्चात् जो ध्यान होता है, उसका स्वरूप भिन्न प्रकार का होता है। तेरहवें गुणस्थान में मन, वचन, काय तीनों योग का निरोध प्रारम्भ होता है। स्थूल से सूक्ष्म होते ही साधक सूक्ष्म क्रिया, प्रतिपातीनाम का तृतीय शुक्लध्यान में स्थित होते हैं ।
इस विषय में अनेक आचार्य सहमत हैं, जैसे
जिनभद्रगणि श्रमाश्रमण कृत "ध्यान शतक" में "अन्तो मुहत्तमेतं, चित्तावस्थाणमेगवत्थुमे । छउमत्थाणं झाणं जोगनिरोहो जिणाणं तु ॥
हरिभद्रीय आवश्यक सूत्र में -
अन्तर्मुहूर्त कालं यच्चित्तावस्थानमेकस्मिन् वस्तुनि तत्स्वअस्थानां ध्यानम् । योग निरोधो जिनानामेघं ध्यानं नान्येषाम् ।
उमास्वाति प्रणीत तत्त्वार्थ सूत्र में -
उत्तमसहननस्येकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् आ मुहूर्तात् ।
विनयविजय विरचित काललोक प्रकाश मेंध्यानं नाम मनः स्थैर्य यावदन्त मुहूर्तकम । शुभ चन्द्राचार्यकृत ज्ञानार्णव में
उत्कृष्ट कायबन्धस्य साधोरन्तमुहूर्ततः ध्यान माहूरर्थकाग्रचिन्तारोधे बुधातमाः श्रीमद्यशोविजय जी प्रणीत अध्यात्मसार मेंमुहूर्तान्तर्मवेद्वयानमेकार्थे मनसः स्थितिः बहार्थसड क्रमे दीर्मा प्यच्छिन्ना ध्यान सन्ततिः उपाध्याय सकलचन्द्रजी कृत ध्यानदीपिका मेंदृढ़संहनंनस्थापि मुनेशन्तमुहूर्तिकम । ध्यानमाहुर्थकाग्रचिंतारोधो जिनोत्माः छदमस्थानांतु यह ध्यान भवेदान्तमुहूतिकेमृ ।'
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१५. उपर्युक्त ध्यान अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही स्थिर रहता है, मुहूर्त अर्थात् ४८ मिनिट और अन्तर्मुहूर्त अर्थात् ४८ मिनिट के बीच का काल। ध्यान ४८ मिनिट से अधिक रह ही नहीं सकता। अतः काल परिमाण अन्तर्मुहूर्त रखा गया है। अंतर्मुहूर्त के पश्चात् मन की स्थिति का परिवर्तन होता है।