Book Title: Yog Prayog Ayog
Author(s): Muktiprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 258
________________ योग-प्रयोग-अयोग/२१३ चौदहवें गुणस्थान में स्थित साधक सम्पूर्ण अयोगी अवस्था में शैलेशीकरण के समय में समुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति नाम के चौथे शु० ध्यान में स्थित होता है। यहाँ कायिक स्थूल व्यापार को रोकने का प्रयत्न होने से इसे ध्यान माना गया है क्योंकि आत्मप्रदेशों की जो निष्प्रकंपता है, वह ध्यान है। ध्यान जिस विषय पर स्थित होता है उस विषय में आत्मशक्ति तीव्र होती है, अनेक प्रकार के अनुभव भासमान होते हैं तथा अनेक प्रकार की लब्धियाँ प्रकट होती हैं । उसका क्या कारण और वह कैसे? अभ्यास दशा में काल प्रवाह नहीं देखा जाता मन स्थिति का परिवर्तन देखा जाता है। मन की एकाग्रता कब तक केन्द्रित रहती है, विकल्प रहित अवस्था कब तक बनी रहती है यह देखा जाता है। एक ही पदार्थ में अन्तमुहूर्त तक एकाग्र रहने वाला समर्थ योगी ही हो सकता है। अतः अन्तर्मुहूर्त शब्द यहाँ छद्मस्थ की अपेक्षा से विवक्षित है। सर्वज्ञ की अपेक्षा से नहीं । सर्वज्ञ में घटाने पर ध्यान का काल परिमाण अधिक भी हो सकता है, क्योंकि वचन और शरीर की प्रवृत्ति विषयक सुदृढ़ प्रयत्न को अधिक समय तक भी सर्वज्ञ लम्बा कर सकते हैं। अन्यथा सर्वज्ञ को ध्यान की आवश्यकता ही नहीं। परन्तु यहाँ ध्यान का अर्थवाचिके और कायिक स्थैर्य है। श्री रत्नशेखर सूरि कृत गुणस्थान क्रमारोह में भी मन की स्थिरता छद्मस्थ का ध्यान और काया की स्थिरता केवली का ध्यान कहा है। ध्यान का महत्त्व ___ प्राकृतिक दृष्टि से प्रत्येक साधक सच्चिदानन्द है। किन्तु उपयोग और उपभोग की अपेक्षा से भिन्नता अवश्य होती है। योगी सत्, चित् और आनन्द में उपयोग रखता है और भोगी उपभोग करता है। ___ भोगी का भोग तो पशुओं में भी पाया जाता है, मानव की अपेक्षा उसमें शक्ति विशेष होती है किन्तु चेतना जागृत नहीं होती, चेतना का विकास मानव में होता है। पशुओं की शक्ति का उपभोग मानव करता है। भोगी मानव ने शक्ति का उपभोग किया, चेतना का विकास किया, किन्तु आनन्द का अस्तित्व खो दिया । शक्ति और चेतना का सम्यक उपभोग ही आनन्द की उपलब्धि है और वह योगी में ही पायी जाती है। ध्यान आनन्द का केन्द्र है। साधक ही अपने सामर्थ्य से आनन्द की अनुभूति पा सकता है। भोगी के लिये, पशुओं के लिए चैतन्य शक्ति का उपभोग हो सकता है पर आनन्द की अनुभूति मात्र योगी को ही हो सकती है। यस्य चित्तं स्थिरी भूतं सहि ध्याता

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