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योग-प्रयोग-अयोग/२१७
लक्षण
रौदध्यान के कारण
१. हिंसा में प्रवृत्ति-जीवों का वध बन्धन आदि का चिन्तन करना । २. असत्य भाषण में प्रवृत्ति-दूसरों को ठगनेवाली मिथ्यावाणी का प्रणिधान । ३. चौर्य में प्रवृत्ति-अन्य के धन आदि वस्तु हरण करने की बुद्धि ।
४. विषय संरक्षण में प्रवृत्ति-शब्दादि विषयों के साधनमूल घन आदि वस्तुओं की रक्षा के लिए अत्यन्त व्याकुल रहना । रौद्र ध्यान के स्वामी तथा लक्षण
स्वामी १. आसन्नदोष रौद्रध्यानी
प्रायः देशव्रती २. बहुल दोषता रौद्रध्यानी प्रायः अविरति ३. अज्ञानदोष रौद्रध्यानी प्रायः मिथ्यादृष्टि
४. मारणान्त दोष रौद्रध्यानी अनन्तानुबन्धी कषाय रौद्रध्यान का अधिकारी जीव प्रथम गुणस्थान से लेकर पंचम गुणस्थानवर्ती हुआ करते हैं२२ रौदध्यान में लेश्या
लेश्या कर्मजन्य पुद्गल का परिणाम है। आर्तध्यान की तरह रौद्रध्यान में भी वही (कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कपोतलेश्या) तीनों लेश्या होती हैं, किन्तु यहाँ अति तीव्र संक्लेशयुक्त होती है। श्रेणिक महाराजा एवं कृष्ण महाराजा को क्षायिक सम्यक्त्व था तथापि अंतिम परिणाम में कोणिक और द्वैपायन के प्रति तीव्र द्वेष होने से हिंसानुबन्धी रौद्रध्यान एवं तीव्र संक्लेषवाली कृष्णालेश्या उत्पन्न हुई थी।
आर्त और रौद्र दोनों ध्यान से संसारी सभी आत्मा अभ्यस्त हैं। दोनों ध्यान में साधक की एकाग्रता तीव्र होती है। जितनी कामनाएँ तीव्र होंगी उतना ही विषयों के प्रति आकर्षण वर्धमान रहेगा। आकर्षण से पदार्थ के प्रति जो एकाग्रता जागृत होती है वह रागजन्य और द्वेष-जन्य ऐसे उभयात्मक होती है।
आर्त और रौद्र ध्यान में राग और द्वेष का प्रभाव विकृति का प्रतीक है। साधक राग और द्वेष को त्याग और वैराग्य में बदल दे। यह बदलने की प्रक्रिया धर्मध्यान है। पदार्थों का आकर्षण, पदार्थों से जुड़ना पदार्थों का संयोग-वियोग इत्यादि पदार्थों से
२२. ध्यानशतक - मा. २७