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२०६ / योग- प्रयोग- अयोग
अर्थात् सौ वर्ष की आयु वाले जीव की आयु भी युवावस्था में टूट जाती है (३७) उपर्युक्त सत्य को जानकर विवेक-पुरुष अपनी आसक्ति को हटा दे और सर्व शुभ धर्मों से युक्त मोक्ष ले जाने वाले आर्य धर्म को ग्रहण करे । ३८ जैसे-पक्षी क्षीण फल वाले वृक्ष को छोड़कर चले जाते हैं ३९ ।
उत्तराध्ययन सूत्र में चित्त मुनि ने संभूति राजन को यही बात कही थी कि आयुष्य निरन्तर क्षय होता जा रहा है। जरा मनुष्य के वर्ण रूप, सुन्दरता आदि को हर रही है। समस्त पदार्थ को छोड़कर तुम्हें एक न एक दिन परवशता से अवश्य जाना है फिर इस अनित्य लोक में राज्यादि के प्रति इतनी आसक्ति क्यों? ४० इसी प्रकार सभी भावनाओं का अनुचिन्तन प्रयोगात्मक रूप से अयोग तक ले जाने में समर्थ है।
३. निर्वेद भावना
सर्व प्रकार के सावद्ययोगों का त्याग करना निर्वेद कहलाता है। निर्वेद अर्थात् संसार के प्रति अरुचि । चारित्र धर्म को स्वीकार करने वाला ही इस निर्वेद भावना का अधिकारी होता है। ईर्ष्या आदि पाँच समिति एवं मनोवाक्काय आदि तीन गुप्ति का पालन करना, परीषह उपसर्ग सहन करना इत्यादि से जो भाव दृढ़ होते हैं उसे निर्वेद भावना कहते हैं । ४२ ये भावना अहिंसा आदि व्रतों के भेद से पाँच प्रकार की है ४ । यह अहिंसादि पाँचों भावनाओं से युक्त होने से इसे चारित्र भावना भी कहते हैं । पाँच महाव्रतों की २५ भावनाएं
उत्तराध्ययन सूत्र में भगवंत ने बताया है कि पाँच महाव्रतों की २५ भावनाओं में मनोयोगपूर्वक चिन्तन करता है वह योगी भव परिभ्रमण नहीं करता। इन भावनाओं के नीदिध्यासन से व्रतों में स्थिरता आती है। आचारांग "समवायांग" प्रश्न व्याकरण सूत्र में पाँच महाव्रतों की २५ भावनाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। समवायांग सूत्र में केवल इसका नामोल्लेख मिलता है । आचारांग और प्रश्न व्याकरण में विस्तार के साथ भावपूर्ण वर्णन मिलता है। जो हृदयस्पर्शी भी है।
इस प्रकार सम, संवेग और निर्वेद- तीनों भावनाओं से साधक शुभयोग से उपयोग और अयोग की आराधना में सफल होता है।
३७. सूत्रकृतांग - २/३/८ ३८. सूत्रकृतांग- १/८/१२-१३ ३९. . उत्तराध्ययन- १३/३१
४०. उत्तराध्ययन- १८/१२ ४१. योगशास्त्र - १/१८, पृ. १० ४२. आदिपुराण - २१/९८