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१६४/ योग-प्रयोग-अयोग
प्रथम अपूर्वकरण
सम्यकत्व
- कोष्ठक नं. ७ ग्रंथिभेद
क्षपक श्रेणी | ९ | १० | १२ गु | ण | स्था । न ।
द्वितीयअपूर्वकरण
केवल ज्ञान
आयोज्यकरण
मोक्ष
समुद्घात शैलेशीकरण
कोष्ठक नं. ८
काय.
इच्छायोग शास्त्रयोग धर्मसंन्यास योगसंन्यास
सामग्रयोग सामर्थ्ययोग तीव्रइच्छा तीवशास्त्र प्रातिभ केवल मन, शैलेशी-मोक्ष बोध-श्रद्धा ज्ञान ज्ञान
वचन, करण
क्ष प क श्रेणी गुणस्थान अप्रमाद द्वितीय अपूर्व करण | त्याग से प्रमाद १४ ५ ६
७ ८ ९ १० १२ १३ इच्छादि योग का कोष्ठक
कोष्ठक नं. ९. योग का | प्राधान्यता मुख्य लक्षण । पात्र योगी. गुणस्थान नाम इच्छायोग इच्छा | सत्य, धर्म, इच्छा, सत्यधर्म इच्छुक ४ ५ ६ प्रधान श्रुतार्थ, सम्यक्त्व, श्रुतज्ञानी, सम्यक्त्व (उपलक्षण से
ज्ञानयुक्त, प्रमादजन्य ज्ञानी किन्तु प्रमाद व्यवहार से १)
एवं विकलता । युक्त शास्त्र- शास्त्र शास्त्रपटुता श्रद्धा- शास्त्रपटु, श्रद्धालु |६ ७ योग प्रधान अप्रमत्ता
अप्रमादी. सामर्थ्य शास्त्र से पर विषय क्षयक श्रेणीगत ८ ९ १० १२ संन्यास प्रधान
प्रातिभ-स्वसंवेदनअनुभवज्ञान, क्षयोपशम
धर्म का त्याग योग सामर्थ्य मन, वचन, काया के योग अयोगीकेवली १४ शैलेशी संन्यास | प्रधान का त्याग अयोग परम
अवस्था में योग
धर्म
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