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१. जड़ बन्धनों से मुक्त होने का परम उपाय – अध्यात्म
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१. षड्द्रव्यात्मक आत्मस्वरूप तात्त्विक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में, २. अंतर्दृष्टि, आत्मसंयोग, आत्मसाक्षात्कार, ज्ञाता-दृष्टा के रूप में, ३. आत्मिक विकास से तैजस् लब्धि की उपलब्धि,
४. अध्यात्मयोग में साधक और बाधक तत्त्व,
(१) पदार्थों का आकर्षण
(२) नौका शरीर नाविक - आत्मा में आधार और आधेय
(३) ममत्व की मूर्च्छा है
(४) आत्मोन्नति का विकासक्रम ।
अध्यात्म योग
अध्यात्म शब्दार्थ
अध्यात्म शब्द 'अघि' और 'आत्मा' इन दो शब्दों के समास से बना है। शुद्ध स्वरूप को लक्ष्य में रखकर तद् अनुसार विचरण करना आध्यात्मिक जीवन या अध्यात्मयोग है। जड़ और चेतन ये संसार के दो तत्व हैं। ये दोनों तत्व एक-दूसरे के स्वरूप को जाने बिना नहीं जाने जा सकते। उनका यथायोग्य निरूपण अध्यात्म के विषय से ही किया जाता है।
आत्मा है, आत्मा सुख-दुःख का कर्ता है, सुख-दुःख का भोक्ता है, परिणामि नित्य है, जड़ बन्धनों से मुक्त होने का उपाय है और मोक्ष है। इन षड् भेदों के संयोग-वियोग जन्य अनेक प्रश्न हमारे सम्मुख उपस्थित होते हैं। अतः आत्मा की विभाव दशा कर्मजन्य संसर्ग का कारणभूत है ।
• कर्म का संसर्ग आत्मा को किस प्रकार होता है ? यह संसर्ग सादि है या अनादि ? यदि अनादि है तो उसका उच्छेद कैसे हो सकता है ? कर्म का स्वरूप कैसा है, कर्म के भेदाभेद कौन-कौन से हैं? कर्म के बन्ध, उदय और सत्ता किस प्रकार नियमबद्ध हैं ?
इस समय आत्मा किस दशा में है ? वह अपनी मूल स्थिति को पा सकता है या नहीं और पा सकता है तो किस तरह ? इत्यादि समस्याओं का समाधान पाना है तो अध्यात्म योग का ज्ञान नितान्त आवश्यक है ।