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योग-प्रयोग-अयोग/१८३
आत्म-दृष्टियों का विकास-क्रम
कोष्ठक नं. २२
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क्षिप्ता
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आत्म- गुण- ध्यान विकासकाल ज्ञान-प्रकाश योगदृष्टि आस्था दशा स्थान क्रम रौद्र-आर्त अविकास काल ०
औध दृष्टि मूढ़ावस्था रौद्रआर्त अविकास काल ०
औध दृष्टि मूढावस्था रौद्रआर्त अविकास काल ०
औध दृष्टि मूढ़ावस्था आर्त रौद्र अविकास काल तृण अग्नि- मित्रा. क्षिप्ताप्रभावत
वस्था आर्त रौद्र अविकास काल गोमय अग्नि- तारा प्रभावत
वस्था २ आर्त रौद्र अविकास काल काष्ट अग्नि- बला विक्षिप्त
प्रभावत आर्त रौद्र अविकास काल दीपप्रभावत दीप्रा विक्षिप्त आर्त रौद्र विकास काल रत्नप्रभा
एकाग्र धर्म आर्त रौद्र विकास काल रत्नप्रभा स्थिरा एकाग्र
आर्त धर्म विकास काल रत्नप्रभा स्थिरा एकाग्र ७ धर्म विकास काल तारा की प्रभा कान्ता एकाग्र ८-१२ धर्म शुक्ल विकास काल सूर्यप्रभावत प्रभा १३ शुक्ल पूर्णविकास चन्द्रप्रभावत् परा निरुद्ध
काल १४ परमशुक्ल पूर्ण विकास चन्द्रप्रभावत् परा निरुद्ध
काल योगीमहात्माओं के प्रकार
गोत्रयोगी, कुलयोगी, प्रवृत्तचक्रयोगी और निष्पन्नयोगी ऐसे योगियों के सामान्यतः चार भेद माने गये हैं१६ इनमें कुलयोगी और प्रवृत्त चक्रयोगी योगशास्त्र के
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निरुद्ध
१६. योगदृष्टि समुच्चय गा. २०८