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१८४/ योग-प्रयोग-अयोग
अनुसार योग के दो अधिकारी माने गये हैं। गोत्रयोगी में योगीजन्य योग्यता का अभाव होता है, अतः वे योगीजनों के लिए अनधिकारी होते हैं । निष्पन्न सिद्धयोगी को योगसिद्ध की पूर्णाहुति हो गई है अतः ऐसे सिद्ध योगी को योग प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती है।
चार प्रकार के योगी कोष्ठक नं. २३
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नाम गोत्रयोगी कुलयोगी प्रवृत्तचक्रयोगी (निष्पन्न) सिद्धयोगी व्याख्या भूमि भव्य योगीकुल में जन्म जिसका अहिंसादि जिसे योग निष्पन्न
__ आदिनाम हुआ हो अथवा योग चक्र प्रवृत्त है, सिद्ध हैं धारी योगी धर्म को चलने लगा है।
अनुसरण करने
वाला लक्षण यथायोग्य सर्वत्र अद्वेषी गुरु- इच्छायम-प्रवृत्ति योगसिद्धि को प्राप्त
गुणविहीन देव-द्विज, प्रिय, यम को प्राप्त हुये समर्थ योगी नाम-धारी दयाल, विनीत, स्थिर यम अर्थी बोधवत, यतेन्द्रिय शुश्रुषादि गुणयुक्त,
अवंचक त्रययुक्त। इस ग्रन्थ अयोग्य योग्य योग्य अयोग्य के योग्यायोग्य कारण योग्यता की यथायोग्यता यथायोग्यता सिद्विभाव प्राप्ति
असिद्धि