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७४ / योग-प्रयोग-अयोग
नहीं होता । चार अरब साठ अरब प्रति सेकण्ड वायु कम्पन से होने लगते हैं, तब चक्षु का प्रभाव होने लगता है। इसी प्रकार गंध और रस की तीव्रता और मंदता का प्रभाव होता है।
मनोवैज्ञानिकों ने संवेदना, उत्तेजना, आवेगों इत्यादि का मापदंड तो निकाला है पर उसका वीर्य से क्या सम्बन्ध है इसका मापदंड तो महर्षिओं की अनूठी उपज है। महर्षियों ने योग द्वारा प्रयोगात्मक रूप से इसे पाया है। जैसेबाह्य उत्तेजना का वीर्य पर प्रभाव खान-पान, हाव-भाव, वेश-भूषा, उत्तेजित दृश्य,
स्पर्श और अनाचरण ज्ञान तन्तु का योग
उत्तेजना को लाने वाला ज्ञान तन्तु है जैसे तार के बिना विद्युत प्रवाहमान नहीं होता वैसे ही तन्तु
के अभाव में उत्तेजना का अभाव । ग्राह्य मन
संवेदन मन में पैदा होता है, उत्तेजना को ग्रहण करने वाला मन यदि नहीं है तो बाह्य वातावरण
और ज्ञान तन्तु दोनों व्यर्थ हैं । वीर्य उत्तेजना चार रूप में उत्तेजित होती है और संवेदना से अनुभूत होती है। जैसे१. प्रकार (Quality) आचार, विचार और संस्कार के रूप में ढल जाना २. बल (Intensity) शरीर की पुष्टि के अनुरूप शक्ति का माप दंड
पाना । ३. समय (Time) वीर्य उत्तेजना (आध्यात्मिक-भौतिक) न्यूनाधिक
समय के अनुरूप उत्तेजित होना । ४. फैलाव (Extensity) बाह्य और आंतरिक दोनों आकृति का प्रकृति और
विकृति के अनुरूप फैलाव होना । योग और वीर्य से प्राप्त लाभ
सत्-असत् का विवेक ज्ञान, बाह्य प्रवृत्तियों का नियन्त्रण, काषायिक भावों की मंदता, अज्ञान दशा में विशुद्धि का बोध, उपयोग की प्राप्ति ।