________________
तृतीय विभाग
(३) योग ऊर्जा और स्वरूप दर्शन अध्याय. १. साधना की फलश्रुति जड़-चैतन्य का विवेक ज्ञान
(ज्ञान-योग) अध्याय २. साधना की चरमावस्था प्रीति, अनुराग, भाव-भक्ति
(भक्ति-योग) अध्याय ३. प्रवृत्ति का परिणमन बन्ध हेतु का कारण
(कर्म-योग) अध्याय ४. साधना का केन्द्र बिन्दु आश्रव निरोध-संवर
(संवर-योग) अध्याय ५. आचार संविधा का, प्राण विधानों में
(आज्ञा-योग) अध्याय ६. तनाव मुक्ति का परम उपाय आंतरिक दोषों की आवश्यक आलोचना।
(आवश्यक-योग)