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१५२/ योग-प्रयोग-अयोग
ही नहीं छोड़ देना चाहिए किन्तु भूल सुधारने की कोशिश करते रहना चाहिए । प्रथमाभ्यास में भूल हो जाना सम्भव है पर भूल सुधार लेने की दृष्टि तथा प्रयत्न हो तो वह भूल भी वास्तव में भूल नहीं है। इसी अपेक्षा से अशुद्धक्रिया को भी शुद्ध क्रिया का कारण कहा गया है। जो व्यक्ति विधि का बहुमान न रखकर अविधि क्रिया करता है उसकी अपेक्षा नहीं करने चाला किन्तु विधि के प्रति बहुमान रखनेवाला, श्रेष्ठ है ।१४ ४. योग एक विधान है परमात्मा की आज्ञा का
स्व निरीक्षण की क्षण
अभ्यास क्रम में अनुशासन दूसरों की अपेक्षा अपने पर,
आज्ञा सबके लिए समान है, सत्य की खोज आज्ञा विधि से. आंतरिक मलिनता का विशोधन । आज्ञायोगवत् लेना।
१४. पातञ्जल योग वृत्ति-पृ. १२६-१३२