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६. तनाव मुक्ति का परम उपायःआंतरिक दोषों की आवश्यक आलोचना
आवश्यक योग प्रत्येक आवश्यक अनुष्ठान को योगियों ने योग क्रिया कहा है। आवश्यक प्रक्रियाओं से योग सिद्ध हो सकता है। इसलिए ही साधुओं को यह क्रिया सुबह-शाम अनिवार्य रूप से अवश्य करनी पड़ती है। शास्त्र में भी ऐसा विधान है कि प्रथम और चरम तीर्थंकर के साधु आवश्यक योग क्रिया नियम से करें । अतएव यदि वे उस आज्ञा का पालन न करें तो साधु पद के अधिकारी ही नहीं समझे जा सकते। "आवश्यक" किसे कहते हैं ?
अवश्य करणाद् आवश्यकम् । जो क्रिया अवश्य करने योग्य है उसी को आवश्यक" कहते हैं। आवश्यक के पर्याय
अनुयोगद्वार सूत्र में आवश्यक के पर्याय शब्द प्राप्त होते हैं जैसे-आवश्यक, अवश्य करणीय, धुव-निग्रह विशोधि, अध्ययन षट्क वर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग इत्यादि। ___ अनुयोग द्वार सूत्र में कहा है कि भाव आवश्यक में रहने वाला साधक अंतर्दृष्टि में स्थित, व्यवहार से पर, अध्यात्म में लीन, समभाव में आसीन रहता है। अन्तर्दृष्टि वाले साधक वंदन, नमस्कार आदि गुणों से गुणानुरागियों की स्तुति प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार भाव आवश्यक करने वाले अन्तत्मि योगी बार-बार ध्यानकायोत्सर्ग आदि अनुष्ठानों में क्रियान्वित रहते हैं । ध्यान द्वारा चित्त शुद्धि करते हुए वे आत्मस्वरूप में विशेषतया लीन हो जाते हैं। भावआवश्यक का स्वरूप अनुयोगद्वार सूत्र में इस प्रकार
"जणं" इमे समणो वा समणी वा सावओं वा साविया वा लोगुत्तरियं भावावस्सयं"
अनुयोगद्वार सूत्र में और भी आवश्यक सूत्र के छः प्रकार दर्शाये हैं-सामाइयं, चउवीसत्थओं; वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं ।
१. अनुयोगद्वार सूत्र २६. भा. १ पृष्ठ १७८