________________
योग-प्रयोग-अयोग/८३
शीत और उष्ण स्पर्श
वैज्ञानिकों ने शीत और उष्ण दोनों स्पर्श सापेक्ष और निर्पेक्ष हैं ऐसा सिद्ध किया है । जैसे शरीर के एक स्थान के परमाणु-कम्पनों से दूसरे परमाणु कंपन शीघ्रता-त्वरित के रूप में होते हैं तो वे कंपन उष्ण-गर्म प्रतीत होते हैं । वही परमाणु कंपन मंद होते हैं तो शीत-ठंडा प्रतीत होते हैं । इसे हम सामान्य परमाणु कंपनों के सम्बन्ध से निरपेक्ष रूप में देख सकते हैं। जैसे शरद ऋतु में कान और हाथों में सर्दी विशेष लगती है किन्तु गालों को शीत नहीं सताता। उससे प्रतीत होता है कि बाह्य शरीर में भी शीत और उष्णता का अनुभव करने वाले स्थान भिन्न हैं । सर्दी के परमाणुओं का तो दोनों स्थान पर समान प्रभाव होता है फिर भी समान स्पर्श का अनुभव नहीं होता है।
स्पर्श का एक सापेक्ष प्रयोग जैसे-तीन बर्तनों में तीन प्रकार का जल है १. बरफ का जल, २. साधारण जल और ३. गरम जल लें। गरम जल में एक हाथ और बरफ के जल में दूसरा हाथ डुबोकर फिर दोनों हाथ एक संग साधारण जल में डुबोवें तो अनुभव होगा कि जल गरम है या ठंडा ।
__ स्पर्श स्थान शीत और उष्ण है वैसे ही दुःखद स्पर्श और सुखद स्पर्श की संवेदना, उत्तेजना और आवेगों का अनुभव प्रतीत होते हैं । जैसे मनोज्ञ पदार्थों के संयोग से सुखद और अमनोज्ञ पदार्थों के संयोग से दुःखद अनुभव होता है। भीतर किसी एक स्थान पर एकाग्र होने पर दुःख की संवेदना का अनुभव त्वरित होता है तो कभी सुख की संवेदना का अनुभव होता है। कभी दीर्घकाल तक मन का केन्द्रित होने से शरीर का हल्कापन या भारीपन का स्पर्श होता है। रागात्मक स्थिति में स्निग्ध स्पर्श का और द्वेषात्मक स्थिति में रूक्ष स्पर्श का अनुभव व्यवहार जगत में और अध्यात्म जगत में अनुभव के स्तर पर पाया गया है । यौगिक प्रक्रिया से स्थान परिवर्तन में 'स्पर्श' विरोध स्लप में भी पाया जाता है जैसेउष्ण स्थान → उष्ण स्थानों के उत्तेजन से उष्णता का बोध होता है
किन्तु शीतली प्राणायाम से उष्ण स्थानों में शीत स्पर्श
का अनुभव पाया गया है । शीत स्थान → शीत स्थान का स्पर्श शीत होता है किन्तु वज्रासन जैसे
उष्णता का अनुभव पाया गया है ।
|
६. सरल मनोविज्ञान पृ. ४८.