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योग-प्रयोग- अयोग / १११
का भी संचार होता है। शरीर में होने वाली सक्रियता का आधार ऊर्जा है। वैज्ञानिकों ने संशोधन द्वारा परिणामों का निर्देशन करते हुए कहा हैं, कि प्राण को धारण करने वाला जो प्राणी है वह एक दिन रासायनिक प्रयोग द्वारा जीवन निर्माण कर सकेगा ।
शिकागो विश्वविद्यालय वैज्ञानिक स्टैन्ली मिलर प्रयोग के बल पर अनुमान करता है कि वायुमंडल में हाइड्रोजन, अमोनिया और मीथेन ही थे। ऑक्सीजन केवल पानी में ही था। तीनों को ट्यूब में संयोजित कर अल्ट्राबायोलेट किरणों से विद्युत को मिलाया गया । फलतः उसमें एमिनो एसिड बने । वैज्ञानिकों ने सोच लिया कि हमें सफलता मिल गई ।
उन्होंने एक ग्रुप डॉ. वी. इन्थशिक, वी. ग्रीसचेको, एन. वोरोवेव, सर ओलिवर लॉज आदि को तैयार किया। वैज्ञानिकों ने रासायनिक तत्वों द्वारा एसिड तो बना लिया, किन्तु जीव या प्राण तत्त्व के निर्माण में सफल नहीं हुए हैं।
हमारे शरीर में सक्रियता का आधार जो प्राण ऊर्जा है, इसका नाम "द बायोलॉजकल प्लाज्माबाडी" है । यह ऊर्जा शरीर ही भविष्य और टेलीपैथी का अनुभव करता है ।
प्राणायाम के प्रकार
१. अनुलोम-विलोम प्राणायाम - वायु शुद्धि के लिए अनुलोम-विलोम सर्वाधिक निर्दोष प्राणायाम है ।
२. शान्त प्राणायाम - साधना के क्षेत्र में शान्त प्राणायाम की नितान्त आवश्यकता है । तालु, नासिका और मुख के द्वारों से वायु का निरोध कर देना "शान्त" नामक प्राणायाम है। प्राण हमारी नाड़ियों सें प्रवाहित होता है। बायें नाक के छिद्र से प्रवाहित होने वाला प्राण इडा नाड़ी यां चन्द्रस्वर कहा जाता है, दायें छिद्र से प्रवाहित होने वाला प्राण पिंगला नाड़ी या सूर्यस्वर कहा जाता है और दोनों नाड़ियों के बीच में प्रवाहित होने वाला प्राण सुषुम्ना कहा जाता है। चन्द्रस्वर शीत और सूर्यस्वर उष्ण होता है। सुषुम्ना में सहज ही मन स्थिर हो जाता है। कपालभाति प्राणायाम से सुषुम्नास्वर चलने लग जाता है। अनेक प्रकार की विद्युत तरंगें भी प्रवाहमान होने लगती हैं। इन तरंगों में अल्फा तरंगें विशेष होती हैं। इनमें से बीटा, डेटा, थीटा आदि तरंगों में मानसिक तनाव विशेष रहता है। प्राणायाम द्वारा तनाव मुक्त हो कर साधक अल्फा तरंगों में तरंगित होता है। तनावग्रस्त मानव जो कार्य दस घंटे में करता है वही कार्य शान्त मानव दो घंटे में कर सकता है। क्योंकि तनाव से रक्त में लेक्टर एसिड का प्रवाह बेटा आदि तरंगों के प्रभाव से बढ़ जाता है। अतः भाव प्राणायाम से सुषुम्ना जागृत होती है और अल्फा तरंगें लम्बे अरसे तक चलती रहती हैं ।