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२६ / योग-प्रयोग-अयोग
शरीर या मस्तिष्क गरम हो जाता है, जिस अवयव की ऊर्जा का उपयोग होता है, वहाँ उसका व्यय होता है, जिसका व्यय होता है, वहाँ गर्मी पैदा होती है। मन को केन्द्रित करने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता है। पुरुषार्थ की प्रबलता से निर्विकल्पता का संयोग मिलता है। इन दोनों के बीच में ऊर्जा का उपयोग अधिक मात्रा में होने के कारण गर्मी का संवर्धन होता है। आज्ञाचक्र में होने वाली एकाग्रता इस गर्मी को शीतलता प्रदान करती है।
विशुद्ध-चक्र में एकाग्रता बढ़ने पर वृत्तियाँ शान्त होती है। क्रोध की आग को शान्त करना है तो विशुद्ध-चक्र की साधना आवश्यक है। मान कषाय की तरंगें समूचे शरीर में व्यापक रूप से प्रज्ज्वलित हैं, उन तरंगों से मुक्त होने के लिए या तरंगों को शांत करने के लिए विशुद्धि-चक्र का ध्यान परम उपाय है।
वृत्तियाँ शांत होने का कार्य विशुद्धि-चक्र का हैं, किन्तु उन वृत्तियों में उभार लाने वाला केन्द्र मणिपुर-चक्र है । मणिपुर-चक्र में जैसे ही एकाग्रता होती है, वैसे ही तेजस्विता प्रज्ज्वलित होती है तेजुलेश्या की पुष्टि होती है और तैजस शरीर के विराट स्वरूप का दर्शन होता है।
विशुद्धि चक्र और मणिपुर-चक्र के बीच में अनाहृत-चक्र है। यह चक्र अत्यन्त पवित्र स्थान पर है, जिनका अंतकरण शुद्ध है, उसका जीवन शुद्ध है। अन्तःकरण की प्रसन्नता, विशालता और पवित्रता विशुद्धता से ही होती है। सम्पूर्ण शरीर में जितना परिश्रम हृदय करता है उतना परिश्रम अन्य अवयव नहीं करते हैं। हृदय की थकान को दूर करने वाला अनाहृत-चक्र है।
अन्तःकरण की शुद्धि का ज्ञान किसी को हो या न भी हो, किन्तु अन्तःकरण की अशुद्धि का ज्ञान तो सभी को है। जब तक अनाहृत-चक्र में स्थिरता नहीं होगी, तब तक विशुद्धि-चक्र की केवल कल्पना ही रहेगी। जहाँ स्थिरता है वहाँ शुद्धता है ही, जो भी चंचलता भासती है, वही विक्षिप्तता है। जिस ज्ञान से विक्षिप्तता की अनुभूति होती है उसी ज्ञान में अन्तःकरण की शुद्धि का सामर्थ्य निहित है। आवश्यकता है शुद्धि के उपाय की खोज की.जाये। अनाहत चक्र में स्थिर मन राग को मिटाता है और शांत, स्वस्थ तथा शुद्ध हो जाता है। ऐसी स्थिति में शुद्ध मन बाह्य जगत से छुटकारा पाता है और भीतर में सदा संलग्न रहता है।
पृष्ठ रज्जु के नीचे का स्थान मूलाधार कहलाता है। इस चक्र के द्वारा साधना का केन्द्र बिन्दु प्रारम्भ होता है.। विद्युत तरंगें तरंगित होती हैं, इन तरंगों से शारीरिक ऊर्जाओं का प्रसारण होता है। मन को केन्द्रित करने का महत्त्वपूर्ण उपाय मूलाधार