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योग-प्रयोग- अयोग / २९
इन्द्रिय-जय से शारीरिक लाभ होता है और कषाय-जय से मानसिक लाभ होता है। इस प्रकार काययोग द्वारा मानसिक और वाचिक दोनों प्रकार की विशुद्धि होती है। प्राणवायु-जय
प्राण है तो जीवन है, जीवन है तो प्राण है। अतः शरीर में प्राण का स्थान सर्वोपरि है। इससे हमारे स्थूल शरीर से पर तैजस शरीर में कार्य संचालित होता है । हमारी धारणा होती है कि जो श्वासोच्छ्वास ले रहे हैं, उसका आयाम ही प्राणायाम है, किन्तु वह धारणा स्थूल है नथुनों से जो वायु ग्रहण किया जाता है, उसे प्राणवायु (ऑक्सीजन) कहा जाता है। प्राण वायु और प्राण दोनों एक नहीं । प्राण का सम्बन्ध चेतना से जुड़ा हुआ है । प्राणवायु का सम्बन्ध स्थूल शरीर से जुड़ा है 1
तेजस शक्ति और चैतन्य शक्ति- इन दोनों का योग होते ही प्राण की उत्पत्ति होती है। हमारे शरीर में मूलाधार चक्र है, जहाँ सुषुम्ना का प्रवेश द्वार है। मूलाधार और सुषुम्ना ही प्राण शक्ति प्रगट होने का स्थान है। इसी स्थान से प्राणशक्ति संचारित होती है । सुषुम्ना से लेकर यह प्राणशक्ति मस्तिष्क तक पहुँचती है। नीचे से ऊपर तक इस शक्ति को ले जाने वाला योगी ही होता है। योगी की शक्ति ऊर्ध्वगामी होती है और भोगी की शक्ति अधोगामी होती है। भोग से रोग बढ़ता है और योग से तन और मन दोनों की स्वस्थता बढ़ती है। प्राणवायु से प्राण विशुद्ध होता है। प्राणवायु विशुद्ध होगा तो प्राण उत्तेजित होगा। प्राण उत्तेजित होगा तो रक्त समूचे शरीर में सक्रिय रूप में संचरित होगा ।
रक्त का संचार हृदय द्वारा होता है। हृदय से रक्त फेफड़ों में जाता है। प्राणवायु (ऑक्सीजन) से फेफड़े विशुद्ध होते हैं और फेफड़ों से रक्त विशुद्ध होता है। इस प्रकार प्राणवायु विशुद्ध होगा तो अशुद्ध रक्त को शुद्ध कर कार्बन आदि को शरीर से निकाल दिया जायेगा और ऑक्सीजन द्वारा रक्त शुद्धि प्रवाहित होती जायेगी । • प्राणवायु शुद्ध है तो रक्त शुद्ध है, प्राणवायु दूषित है तो रक्त भी दूषित है। दूषित रक्त समूचे शरीर को रुग्ण बना देता है अतः शुद्ध वायु रक्त को शुद्ध बनाता है। शुद्ध रक्त शरीर को निरोगी बनाता है और निरोगी शरीर से प्राण को बल मिलता है।
जहाँ प्राणवायु पहुँचता है, वहाँ प्राण उत्तेजित होता है। जहाँ प्राणवायु नहीं पहुँचता वहाँ रक्त का शोधन नहीं होगा। जहाँ रक्त का शोधन नहीं होगा वहाँ अनेक विकृत्तियाँ बढ़ती जायेंगी । इन विकृतियों को दूर करने का उपाय है प्राणायाम | प्राणायाम द्वारा प्राणवायु की साधना सिद्ध होती है। जो प्राणायाम को जानता है, वह प्राणवायु का शोधन करना जानता है। प्राणायाम के बिना प्राणवायु का सम्यक् उद्दीपन नहीं होता और प्राणवायु की शुद्धि के बिना प्राणायाम की साधना अपूर्ण है । .