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३८/ योग-प्रयोग-अयोग
अहोभाव व्यक्त करते हैं क्योंकि सत्य की खोज ऋषियों द्वारा उस समय हुई थी जबकि पाश्चात्य संस्कृति अपनी बाल्यावस्था में मिट्टी में खेलती थी।
शब्द शास्त्र में भी शब्द रूपमन्त्र शुद्धि को यौगिक-प्रयोग का द्वार मानकर उसका अन्तिम ध्येय परम. श्रेय ही माना है।
कर्मशास्त्र का भी आखिरी उद्देश्य मोक्ष ही है। इस प्रकार भारतीय साहित्य का कोई भी स्रोत क्यों न हो अंतिम ध्येय मोक्ष ही रहा है।
व्यवहार हो या परमार्थ, किसी भी विषय का ज्ञान आचरण के बिना परिपक्व नहीं हो सकता और आचरण ही योग है। सच्चा ज्ञानी ही योगी माना जाता है क्योंकि ज्ञान का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से अनेक गुना अधिक गतिमान होता है । १८
योग का उपभोग योग का शरीर है और योग का उपयोग योग की आत्मा है। निवृत्ति रूप प्रवृत्ति का अभ्यास ही जैन उपयोग का आदर्श रहा है। साधुचर्या में पंच महाव्रत आदि यम, तप, स्वाध्याय आदि नियम, पर्यंकासन, वीरासन, उत्कटिकासन आदि आसन, कायोत्सर्ग आदि मुद्रा इत्यादि इन्द्रियजय होता है।
नाड़ी विज्ञान, सुषुम्ना का उत्तेजन और प्राणवायु की विशुद्धि प्राणायाम है, जिससे तैजस जाग्रत होता है। .
शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि मनोज्ञ-अमनोज्ञ वासनात्मकजय प्रत्याहार है।
साध्वाचार का जयणाजोगर स्वाध्याय आदि धारणा है। चार प्रहर में तीन प्रहर स्वाध्याय और ध्यान की मुख्यता होती है अतः साधुचर्या में स्थित रहना ही ध्यान माना गया है।
ध्यान के लक्षण, भेद, प्रभेद आलंबन आदि का विस्तृत वर्णन का भी स्पष्टीकरण आगम और साहित्य में पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है।
919, Paul Brunton, The Hidden Teaching Beyond
सूर्य-चन्द्र ग्रह का प्रकाश पृथ्वी से तारों का अन्तर बताने के लिए विज्ञान द्वारा स्वीकृत परिणाम है प्रकाशवर्ष । एक प्रकाशवर्ष यानि एक सैकण्ड में एक लाख छियासी हजार मील लगभग तीन लाख किलोमीटर के वेग से गति करता प्रकाशं एक वर्ष में जितना अन्तर काटे उतना अन्तर । चन्द्र से पृथ्वी तक-लगभग सवा दो लाख मील अर्थात् ३,८४,००० किलोमीटर आने में प्रकाश को लगभग सवा सैकण्ड लगता है। नौ करोड़ और तीस लाख मील-१४ करोड ८८ लाख किलोमीटर दूर रहे सूर्य में से निकलकर पृथ्वी तक आने में प्रकाश को करीब आठ मिनट (५०० सैकिण्ड) लगते हैं और नैप्चून के तेज को हमारी आँख तक पहुँचने में चार प्रकाश घण्टे लगते है, अर्थात् पृथ्वी से चन्द्र सवा प्रकाश
सैकण्ड, सूर्य लगभग सवा आठ प्रकाश मिनट और नैप्चून चार प्रकाश घण्टे दूर कहा जायेगा। १८. Yoga,P-11 १९. उत्तराध्ययन-अ. २४/२३ २०. उतराध्ययन-अ. २६/१२