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२४/ योग-प्रयोग-अयोग
प्राप्ति क्रम का निरीक्षण
स्मृति, कल्पना, विचार योग है। इन तीनों का व्यक्त-अव्यक्त, मौन-प्रयोग है और प्रयोग से संपूर्ण निर्विकल्प अवस्था अयोग है।
परिवर्तन की प्रक्रिया काय-योग का प्रयोग शरीर ज्ञान
आत्मा जिस शरीर को धारण करता है वह शरीर दृश्य और अदृश्य स्थूल और सूक्ष्म दो स्वरूप में हमारे समक्ष उपस्थित होता है। स्थूल शरीर दृश्यमान है, जिसे जैन दर्शन में औदारिक कहा जाता है। यह शरीर अस्थि, रक्त, मज्जा, वीर्य आदि धातुओं से निर्मित हुआ है। सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित होते हैं। जैन दर्शन में सूक्ष्म शरीर तैजस और कार्मण दो प्रकार के होते हैं। कार्मण शरीर अति सूक्ष्म कर्म-वर्गणाओं द्वारा निर्मित होता है। चतुःस्पर्शी होने के कारण तैजस शरीर से अति सूक्ष्म होता है। ये कार्मण शरीर चैतन्य और पुद्गल-दोनों के योग से निर्मित होता है। कार्मिक पुदगल चैतन्य को प्रभावित करता है और चैतन्य कार्मिक पुद्गल को प्रभावित करता है। इस प्रकार दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध से कर्म निकाचन होते हैं और स्थूल औदारिक और सूक्ष्म तैजस शरीर पुष्ट होता है।
दृश्यमान, स्थूल औदारिक शरीर अनेक शक्तियों का भंडार है। इन शक्तियों का उपयोग करने वाले साधक विशिष्ट लब्धियों का द्वार खोल सकता है। हमारे शरीर में अरबों, खरबों कोशिकायें हैं । हर कोशिका अपना स्वतन्त्र कार्य करती रहती है, इसमें कई कोशिकाएँ सूक्ष्म होती हैं और कई कोशिकाएँ स्थूल होती हैं.। केवल मस्तिष्क में ही १४ करोड़ कोशिकाओं का भंडार है। १४ अरब ५ लाख ज्ञान तन्तुओं का जाल विद्यमान है। ये ज्ञान तन्तु नाना प्रकार के रंग, राग ध्वनियाँ रूप, रस, गंध आदि की अनुभूति का आस्वादन करते रहते हैं। शरीर शास्त्रियों ने अनेक वृत्तियों का अनेक संस्कारों का केन्द्र मस्तिष्क से खोजा है। अनेक संवेदनाएँ अति सूक्ष्म होती हैं, वे मस्तिष्क में कभी तो तनाव लाती हैं और कभी शान्त हो जाती हैं, जिससे परिवर्तन की दिशा प्राप्त होती है। तनाव के समय में बुद्धि नियन्त्रित नहीं रहती, किन्तु शान्ति के समय में बुद्धि समूचे शरीर में नियन्त्रण लाती है। इस नियन्त्रण से अनेक आंतरिक द्वार खुल जाते हैं । वृहद् मस्तिष्क से निकलती हुई ज्ञान धारा लघु मस्तिष्क को पार करती हुई सुषुम्ना मार्ग में फैलती है । पृष्ठरज्जु के माध्यम से सुषुम्ना मार्ग साधना में संलग्न होने का आलंबन बन जाता है। इस प्रकार मस्तिष्क से सुषुम्ना मार्ग