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योग-प्रयोग-अयोग/२५
में चैतन्य ज्ञान धारा प्रवाहित होता है। फलतः कुंठित बुद्धि सचेत होती है। ज्ञान का विकास होता है. और विवेक की जागृति होती है। __हमारे समूचे शरीर का निरीक्षण करें तो ऊर्ध्वभाग में ज्ञान और अधोभाग में काम का प्रवाह अधिक मिलता है । मानव अनेक कामनाओं के घेरे में व्यस्त होने से अनेक तनावों से ग्रस्त है। इन तनावों से त्रसित होने के कारण कभी क्रोध उभरता है, तो कभी मान के मंजिल पर चढ़ जाता है, कभी मायावी बनकर अनेक माया के जाल बिछाता है तो कभी असंतोष होने से निराशीवादी बनकर बैठ जाता हैं। हमारे सम्पूर्ण शरीर में तैजस शरीर से विद्युत विद्यमान होता है। उससे जब विषय वासनात्मक ऊजाएँ प्रवाहमान होती हैं तब काम केन्द्र पुष्ट होता है और शुभयोग, शुभलेश्या, शुभ अध्यवसाय की ऊर्जा प्रवाहमान होती है तब ज्ञान केन्द्र पुष्ट होता है । यौगिक प्रक्रियाओं द्वारा वीर्य का ऊर्वीकरण किया जाता है और भोगेच्छा से वीर्य का अधःपतन होता है । ऊवीकरण और अधःपतन का माध्यम. है सुषुम्ना । छत्तीस हड्डियों से पृष्ठरज्ज का संस्थान बना हुआ है उनके मध्य भाग में सुषुम्ना का स्थान है। वीर्य ऊध्वीकरण से एकाग्रता, निष्ठा, तन्मयता का अनुभव होता है और सुषुम्ना का द्वार खुलता जाता है। सुषुम्ना से चक्रों का उद्घाटन
सुषुम्ना का मार्ग खुलता है तो अपार शान्ति का अनुभव होता है। अपार दिव्यता का दर्शन होता है. संकल्प विकल्प की अवस्था से पर स्थिरता का स्वामित्व स्थापित होता है। सम्पूर्ण शरीर में कंपन, धड़कन आदि संवेदना होती है। हमारा श्वास इडा
और पिंगला को छोड़कर मध्यमार्ग सुषुम्ना में प्रवाहित होता है। इडा से श्वास लेते हैं, तब भी मन चंचल होता है, पिंगला से श्वास लेते हैं, तो भी मन चंचल होता है। मन की चंचलता को सुषुम्ना द्वार में प्रवेश करने वाला श्वास स्थिर करता है। सुषुम्ना चंचलता को समाप्त करने का सर्वोत्कृष्ट यौगिक प्रयोग है।
मूलाधार से यह सेतु सहस्र सार तक फैला हुआ है। इस बीच में अनेक स्थान ऐसे हैं, जहाँ मन की चंचलता स्थिर हो जाती है जैसे-मस्तिष्क और तालु के नीचे भृकुटी के बीच आज्ञाचक्र का स्थान है। इस स्थान पर ध्यानस्थ साधक ध्यान करने पर अनेक ग्रन्थियों को भेद सकता है । दिव्य आभा का दर्शन कर सकता है । आज्ञाचक्र पर केन्द्रित होने वाला साधक जागृत होता है। श्रद्धा तन्मयता और सामर्थ्य का स्वामी होता है। ध्यान काल में जैसे अनेक द्वार खुलते हैं, वैसे अनेक ऊर्जाओं का व्यय भी होता है, क्योंकि मस्तिष्क में पैदा होने वाली विद्युत तरंगों से श्रम हो जाता है,