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योग-प्रयोग-अयोग/५
नहीं ले सकती । शरीर अकेला है, वह भी कुछ नहीं कर सकता । करने के लिए. कम्मावादी-किरियावादी पद का रहस्यात्मक रूप से उद्घाटन हुआ है। कर्म से क्रिया और क्रिया से कर्म अनवरत जुड़ा हुआ है और वही संसार है।
चिति संज्ञा धातु से चैतन्य शब्द बनता है, चैतन्य आत्मा का गुण है। गुण से गुणी जुदा नहीं होता, चैतन्य से आत्मा जुदा नहीं होता। जो जुद होता है वह पर्याय होता है, पर्याय परिवर्तनशील है, अनित्य है, अशाश्वत है, नाशवान है, अधव है, जड़ है। अतः जहाँ चैतन्य है, वहाँ आत्मा है, जहाँ चैतन्य नहीं, वहाँ जड़ है। इसे शरीर या पुदगल भी कहते हैं। __ इस प्रकार यह संसार दो तत्वों की उपज है जड़ और चैतन्य ; आत्मा और शरीर, जीव और पुद्गल । दोनों तत्वों को अभिन्न कराने वाला संयोग योग है और दोनों तत्वों को भिन्न कराने वाला प्रयोग उपयोग है। योग का सम्बन्ध शरीर से है और उपयोग का सम्बन्ध आत्मा से है। उप का अर्थ है ज्ञेय और योग का अर्थ है जोड़ना अर्थात् ज्ञेय पदार्थों के साथ ज्ञान का सम्बन्ध जोड़ना उपयोग है, यही आत्मा का लक्षण है। ___ कर्म तत्व द्वारा आत्मा उपयोग में आवरण आता है, शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श द्वारा विषय रूप योग जागृत होता है यही शरीर का लक्षण है। इस प्रकार आत्मा
और शरीर योग और उपयोग लक्षण से जुड़े हुए हैं। इसी हेतु सशरीरी आत्मा इस लोक में सर्वत्र घूमता है और मुक्त आत्मा सिद्ध होता है ।
योग और उपयोग इस लक्षण द्वारा दो स्थितियाँ स्पष्ट रूप से हमारे सामने उभर कर आती हैं – (१) बाह्य स्थिति, (२) अध्यात्म स्थिति। मन, वचन, काय रूपयोग से हम बाह्य स्थिति से जुड़ते हैं और उपयोग से हम अध्यात्म स्थिति से जुड़ते हैं। हम जब बाह्य से जुड़ते हैं तब दूसरे से जुड़ते हैं, पर से सम्बन्ध स्थापित करते हैं, पर में अपनेपन के दर्शन करते हैं । यह पर जो है वही है हमारा शरीरं । दूसरे से परे होकर स्व दर्शन है वह आत्मा है। शरीर दृश्य है आत्मा अदृश्य । केवल शरीर है तो परिभ्रमण का कारण नहीं बनता। केवल आत्मा है तो भी परिभ्रमण का प्रश्न नहीं उठता, दोनों हैं किन्तु कोई सम्बन्ध नहीं है तो भी परिभ्रमण का प्रश्न नहीं उठता, प्रश्न उठता है आत्मा को शरीर प्रभावित करता है और शरीर को आत्मा प्रभावित करता है ऐसे क्रियात्मक अवसर पर। ___ हमारी प्रसन्नता, हमारा आनन्द, हमारी शक्तियाँ, हमारी विकृतियाँ, हमारी बाधाएँ, हमारी स्खलनाएँ, हमारी यौगिक प्रक्रियाएँ इत्यादि की अभिव्यक्ति का माध्यम हमारा शरीर है और अनुभूति का माध्यम हमारी आत्मा है। इस प्रकार आत्मा कर्मों का