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त्रैवर्णिकाचार |
एते प्रोक्ता जिनैर्द्वादश परिगुणिता वाचनः कायभेदै-,
स्ते चान्यैः कारिताद्यैस्त्रिभिरपि गुणिताचाष्टशून्यैकसंख्याः ॥ ८९ ॥
पृथिवी, अपू, , तेज, वायु, प्रत्येक वनस्पति, नित्यनिगोद, चतुर्गति निगोद, दो इन्द्री, ते इन्द्री, चौ इन्द्री, असंज्ञी और संज्ञी इन बारह भेदोंको मन, वचन और कायसे गुणा करने पर छत्तीस भेद और कृत, कारित, अनुमोदनासे गुणा करने पर एकसौ आठ भेद इस तरह भी हिंसाके एकसौ आठ भेद होते हैं ॥ ८९ ॥
वश्यकर्माणि पूर्वाह्नः कालश्च स्वतिकासनम् ।
उत्तरा दिक् सरोजाख्या मुद्रा विद्रुममालिका ॥ ९० ॥ जपाकुसुमवर्णा च वषट् पल्लव एव च ।
वशीकरण मंत्र जप करते समय पूर्वाह्न ( नौ बजेसे पहलेका ) काल होना चाहिए, उत्तर दिशामें मुँह करके स्वस्तिकासनसे बैठना चाहिए, कमल-मुद्रा, जपाकुसुमके रंग जैसा वर्ण, मँगोंकी माला और अन्तमै वषट् यह पल्लेव होना चाहिए ॥ ९० ॥
आकृष्टिकर्मणि ज्ञेयं दण्डासनमतः परम् ॥ ९१ ॥ अङ्कुशाख्या सदा मुद्रा पूर्वाह्नः काल एव च ।
दक्षिणा दिक् प्रवालानां माला वौषट् च पल्लवः ॥ ९२ ॥ उदयार्कनिभो वर्णः स्फुटमेतन्मतान्तरम् ।
२१.
दण्ड आसन, अंकुश नामकी मुद्रा, पूर्वाह्न काल, दक्षिण दिशा, प्रवाल मणिकी माला, उगते हुए सूर्य के जैसा वर्ण और वौषट् पल्लव, ये आकर्षण करनेवाले मंत्रके जपते समय होना चाहिए ॥ ९१-९२॥
स्तम्भकर्मणि पूर्वा दिक् पूर्वाह्नः काल उच्यते ॥ ९३ ॥ शुम्भुमुद्रा च पीताभो वर्णो वज्रासनं मतम् ।
ठठेति पल्लवो नाम माला स्वर्णमणिश्रिता ।। ९४ ॥
स्तम्भन करनेवाले मंत्र जपते समय पूर्वदिशा, पूर्वाह्न काल, शुम्भु मुद्रा, पीत वर्ण, वज्रासन, सुवर्णमणियोंकी माला और ठठ यह पल्लव होना चाहिए ॥ ९३-९४ ॥
निषेधकर्मणीशानदिक् सन्ध्या समयोऽपि च । भद्रपीठासनं प्रोक्तं वज्रमुद्रा विशेषतः ।। ९५॥
१ मंत्रके अन्तमें उच्चारण किये जानेवाले शब्दको पल्लव कहते हैं ।