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सोमसेनमट्टारकविरचित
यह मंत्र पढ कर पूजा-स्थानमें प्रवेश करे ॥७॥
पुष्पांजलिॐ हाँ झाँ भूः स्वाहा ॥ पुष्पाञ्जलिः ॥ ८॥ यह मंत्र पढ़ कर जिन-चरणोंपर पुष्पांजलि क्षेपण करे ॥८॥
वाद्यघोष-. ॐ हाँ वाद्यमुदघोषयामि स्वाहा ॥ तदाप्रभृति बहिर्वाधघोषणम् ॥ ९॥ यह मंत्र पढ़कर पुष्पांजलि क्षेपणके समयसे लेकर बाहर बाजे बजवावे ॥ ९ ॥ ॐ हाँ अहं वास्तुदेवाय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं दीपं धूपं चरुं बलिं स्वस्तिकमक्षतं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥ १० ॥
ॐ ह्रीँ अहँ वास्तुदेवाय इत्यादि मंत्र पढ़ कर वास्तु देवताको अर्घ्य पाद्य वगैरह देवे ॥ १० ॥ बाद नीचे लिखा श्लोक पढ़ेः
यस्यार्थं क्रियते कर्म स प्रीतो नित्यमस्तु मे ।
शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः ॥७॥ जिस देवके लिए मैं शान्तिक और पौष्टिक कर्म करता हूं वह देव मुझपर हमेशाह प्रीति करे और सब कामोंमें सिद्धि दे-विघ्न दूर करे ॥७॥
भूमिशोधनॐ ही वायुकुमाराय सर्वविघ्नविनाशनाय महीसम्मार्जनं कुरु कुरु हूं फट् स्वाहा ॥ दर्भपूलेन यागभूमि परितः सम्माजनम् ॥ पूर्वेशान्ययोर्मध्ये वायुकुमारायार्यप्रदानम् । एवमुत्तरत्रापि ॥ ११॥
"ॐ ह्रीँ वायुकुमाराय "इत्यादि मंत्र पढ़कर डाभके पूलेसे यागभूमि (पूजा करने की जगह ) को चारों ओरसे बुहारे । पूर्व दिशा और ईशान दिशाके बीच में वायुकुमार को अर्घ चढ़ावे । इसी तरह आगे भी करे ॥ ११ ॥ ॐ हीं मेघकुमाराय हं सं वं मं झं ठं ठं क्षालनं कुरु कुरु अहं धरां प्रक्षाल्य भूमिशुद्धिं करोमि स्वाहा ॥ दर्भपूलोपात्तजलेन तदा भूमि सिञ्चेत् ॥ १२॥ .