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त्रैवर्णिकाचार ।
तृतीयस्थाने यवशरावमग्रे निधाय पूर्वोक्तशस्त्रशेषैश्व - ' ॐ हीं नमः आचार्य परमेष्ठिने मम पुत्रो निष्क्रान्तिमुण्डभागी भवतु स्वाहा इत्युक्त्वा केशान् संछिद्य पूर्ववत्कुर्यात् ।
तीसरे स्थानके केश कतरते समय जवके दियेको बालकके सामने रखकर पहले की तरह वगैरह हाथमें लेकर 'ॐ नमः आचार्य परमेष्ठिने' इत्यादि मंत्र पढ़कर केशोंको कतरकर पहले की तरह सारी विधि करे ।
छुरा
वामभागे केशानां भागद्वयं कृत्वा तत्र प्रथमभागे माषपात्रमग्रे निधाय शस्त्रशेषैश्च – 'ॐ नमः उपाध्यायपरमेष्ठिने मम पुत्र ऐन्द्रभागी भवतु स्वाहा । इत्युच्चार्य पूर्ववत् कुर्यात् ।
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बाईं तरफ के केशोंके दो भाग कर प्रथम भागको कतरते समय उड़दका दिया बालकके सामने रखकर पूर्वोक्त छुरा वगैरह हाथमें लेकर 'ॐ नमः उपाध्याय परमेष्ठिने' इत्यादि मंत्र पढ़कर केशोंको कतरकर माताके हाथमें देवे । माता ' तथा भवतु ' कहकर केशोंको दूध और घी लगाकर गोबर के दिये में गेरे ।
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द्वितीयस्थाने शमीपल्लवपात्रं निधाय शस्त्रशेषैश्च - 'ॐ हौं नमः सर्व साधुपरमेष्ठिने मम पुत्रः परमराज्यकेशभागी भवतु स्वाहा । , इत्युक्त्वा पूर्ववत्कुर्यात् ।
दूसरे स्थानके केश कतरते समय शमीपक्षके पत्तोंके दियेको बालकके सामने रखकर छुरा गैरह हाथमें लेकर 'ॐ नमः सर्वसाधुपरमेष्ठिने ' इत्यादि मंत्र पढ़कर पूर्वोक्त सारी विधि करे ।
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तत्रोष्णोदकेन केशान् प्रक्षाल्य - ' ॐ नहीं पञ्चपरमेष्ठिप्रसादात् केशान्वय शिरो रक्ष कुशली कुरु नापित ।' इत्युक्त्वा नापिताय पिता क्षुरं दद्यात् । नापितोऽपि ' भवदीप्सितार्थो भवतु ' इत्युक्त्वा शिखा परिरक्ष्य शेषकेशान् मुण्डयेत् । ततस्तान् केशान् क्षीरघृतधान्यगोमयपात्राणि च महावाद्य विभवेन नद्यां क्षिपेत् । ततः कुमारं स्नापयित्वा वस्त्रभूषणैरलंकृत्य गृहमानीय यक्षादीनामर्घ्य दत्वा पुण्याहवाचनैः पुनः सिंचयित्वा सज्जनान् भोजयेत् ।
बाकी बचे हुए केशोंको गर्म जलसे धोकर “ ॐ व्हीं पश्वपरमेष्ठि० " इत्यादि मंत्र पढ़कर बालकका पिता वह छुरा नाईको दे देवे । नाई भी ' आपका अभीप्सित हो ' ऐसा कहकर चोटी छोड़कर बाकी के केशका मुंडन करे । इसके बाद उन केशोंको और दूध, घी, धान्य तथा गोमयके दियोंको भारी गाजे बाजे के साथ नदीमें प्रवाहित करे । बाद बालकको स्नान कराकर वस्त्र आभूषण से अलंकृत करे और घर में लाकर यक्ष आदिको अर्ध देकर पुण्याहवचनोंद्वारा पुनः बालकका सेचन कर सज्जनों को भोजन करावे ।