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सोमसेनभट्टारकविचित ।
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माता और पिता मरणको प्राप्त हो गये हों और पुत्र देशान्तरमें रहता हो तो वह जिस दिन उनकी मृत्युका संवाद सुने उस दिनसे लेकर दश दिन तकका सूतक पाले ॥ ७१ ॥ .
पल्या अपि तथाशौचं भवेदेव विनिश्चितम् । पन्याशौचं भवेद्भतुरित्येवं मुनिरब्रवीत् ॥ ७२ ॥ दूरस्था निधनं भर्तुर्दशाहाच्छूयते बहिः ।
भार्या कुर्यादघं पूर्ण पन्या अपि पतिस्तथा ॥ ७३ ॥ पत्नीको पतिके मरणका और पतिको पत्नीके मरणका सूतक भी दश दश दिनका है। तथा पत्नी दूर रहती हो वह अपने पतिका मरण दश दिन बाद सुने एवं पति दूर रहता हो वह अपनी पत्नीका मरण दश दिन बाद सुने तो दोनों, जिस दिन मृत्युका संवाद सुनें उस दिनसे लेकर दश दश दिन तकका सूतक पालें ॥ ७२-७३ ॥
मातापित्रोर्यथाशौचं दशाहं क्रियते सुतैः। ... अनेकेऽब्देऽपि दम्पत्योस्तथैव स्यात्परस्परम् ॥ ७४ ।। अनेक वर्षों बाद भी माता-पिताका मरण सुनने पर जैसे पुत्र दश दिनतकका सूतक पालता है वैसे ही पति-पत्नीको भी परस्परमें दश दश दिनका सूतक पालना चाहिए ॥ ७४ ॥
पितुर्दशाहमध्ये चेन्माता यदि मृता सदा । दहेन्मन्त्रामिना प्रेतं न कुर्यादुदकक्रियाम् ॥ ७५ ॥ पैतृकादूर्ध्वमेव स्यान्मात्राशौचं तु पक्षिणी। .
विधायोदकधारादि कुयोन्मातुः क्रियां ततः॥ ७६ ।। पिताकी मृत्युके दश दिनों में ही यदि माताका मरण हो जाय तो उसके मृतक शरीरका तो मंत्रामिसे दहन करे परन्तु उसकी उदकक्रिया न करे । पिताके दश दिनोंके पश्चात् माताका पक्षिणी (डेढ़ दिनका) आशौच आता है उस समय उदकक्रिया आदि करके पश्चात् माताकी सब क्रियाएं करे ॥ ७५-७६ ॥
मातुर्दशाहमध्ये तु मृतः स्याद्यदि वै पिता ।
चितुर्मरणमारभ्य दशाहं शावकं भवेत् ॥ ७७ ॥ माताकी मृत्युके दश दिनोंमें ही यदि पिताका मरण हो जाय तो पिताकी मृत्युके दिनसे लेकर दश दिन तक उसके मरणका अशौच रहता है। भावार्थ-"मृतकं मृतकेनैव" इस श्लोकके अनु. सार जैसे पिताकी मृत्युके दश दिनोमें माताका मरण हो जानेपर माताका मरणाशीच पिताके दश. दिनों में ही समाप्त हो जाता है वैसे ही उसी श्लोकके अनुसार माताकी मृत्युके दश दिनोंमें पिताका मरण हो जानेपर पिताका मरणाशौच भी माताके दश दिनोंमें ही समाप्त हो जाना चाहिए । परंतु यहां यह नियम नहीं है। "मातुर्दशाहमध्ये” इत्यादि श्लोक " मृतकं मृतके नैव " इत्यादि श्लोकके विषयको बाधा पहुंचाता है। इसका कारण यह "कि समत्वे गुरुणा लघु बाध्यते लघुना गुरु न बाध्यते" अर्थात् समान सूतक में गुरु सूतकद्वारा लघुमूतक बाधित हो जाता है परंतु लघद्वारा गुरुबाधित नहीं