Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 423
________________ ३८२ सोमसेनमट्टारकविरचित __ पति मरनेपर दश दिन यदि स्त्री प्रसूति हो जाय या रजस्वला हो जाय तो वह अपने नियत समयपर शुद्ध होकर और स्नानकर वस्त्राभरणोंका त्याग करे : यहांतक स्त्रियों के विषयमें विचार किया। आगे दुर्मरण आदिका विचार करते हैं ॥ २०१॥ .. दुर्मरण। विद्युत्तोयामिचाण्डालसर्पपाशद्विजादपि । वृक्षव्याघ्रपशुभ्यश्च मरणं पापंकमणाम् ॥ १०२ ॥ __ विजली, जल, अमि, चांडाल, सर्प, व्याध, पक्षी, वृक्ष, व्याघ्र, तथा अन्य पशु इत्यादिके द्वारा पापियोंका मरण होता है ॥ १०२ ॥ आत्मानं घातयेद्यस्तु विषशस्त्राग्निना यदि । स्वेच्छया मृत्युमाप्नोति स याति नरकं ध्रुवम् ॥ १०३ ॥ देशकालभयाद्वापि संस्कर्तुं नैव शक्यते । नृपाद्याज्ञां समादाय कर्तव्या प्रेतसत्क्रिया ॥ १०४॥ वर्षादूर्ध्वं भवेत्तस्य पायाश्चत्तं विधानतः। शान्तिकादिविधिं कृत्वा पोषधादिकसत्तपः॥ १०५॥ मृतस्यानिच्छया सद्यः कर्तव्या प्रेतसत्क्रिया । मायश्चित्तविधि कृत्वा नैव कुर्यान्मृतस्य तु ॥ १०६ ॥ शस्त्रादिना हते सप्तदिनादाक् मृतो यदि। भवेदुमेरणं प्राहुरित्येवं पूर्वसूरयः ॥ १०७॥ ___ जो विष, शस्त्र, अमि आदिके द्वारा आत्मघात कर स्वेच्छासे मरणको प्राप्त होता है वह सीधा नरकको जाता है। ऐसे मनुष्यका देश और कालके भयसे दाह-संस्कार नहीं कर सकते हो तो राजा आदिकी आज्ञा लेकर उसकी दाहक्रिया करना चाहिए । एक वर्ष बाद शांतिविधि करके उसका विधिपूर्वक उपवास आदि प्रायश्चित्त ग्रहण करे। यदि वह अपनी अनिच्छासे विषादि द्वारा मरणको प्राप्त हुआ हो तो उसका दाह-संस्कार तत्काल करे । उसके इस अनिच्छा मरणका प्राय श्चित्त नहीं भी ले । शस्त्र आदिका प्रहार होनेपर सात दिनके पहले यदि उसका मरण हो जाय तो वह दुर्मरण है, ऐसा पूर्वीचार्य कहते हैं ॥ १३०-१०७ ॥ ___ अथ पुत्रीप्रसंगः-कन्यामरणका आशौच । कन्यानां मरण चौलात्माग्बन्धोः स्नानमिष्यते । व्रतात्मागघमेकाहं विवाहात्माग्दिनत्रयम् ॥ १०८॥ ऊढानां मरणे पित्रोराशौचं पक्षिणी मतम् । ज्ञातीनां त्वाप्लवो भतुः पूर्ण पक्षस्य चोदितम् ॥ १०९॥ चौल-संस्कारसे पहले कन्याका मरण हो तो बंधुओंको सिर्फ स्नान कहा है-वे स्नानकर लेनेसे ही शुद्ध हो जाते है । व्रतबंधसे पहले मरण हो तो एक दिनका सूतक मनावें और विवाहसे ,

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