Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 421
________________ ३८. wwwanmun सोमसेनभट्टारकवि चित। ४५.yorittner घरका कोई मनुष्य बीमार हो या वह और किसी रोगसे ग्रसित हो अतः सूतक शुद्धि के दिन वह , स्लान न कर सकता हो तो दूसरा नोरोग मनुष्य स्नान कर उसका स्पर्श करे फिर स्नान कर स्पर्श करे, एवं दशवार मान कर करके उसका. स्पर्श करे ऐसा करनेसे यह रोगी मनुष्य शुद्ध हो जाता है || ८५|| .. ज्वर-प्रसित रजस्वलाकी शुद्धि। ज्वराभिभूता वा नारी रजसा चेत्परिटता। कथं तस्या भवेच्छौचं शुद्धिः स्यात्केन कर्मणा ॥ ८६ ॥....... ... चतुर्थेऽहनि सम्पाते स्पृशेदन्या तु तां स्त्रियम्। स्नात्वा चैव पुनस्तां वै स्पृशेत् स्नात्वा पुनः पुनः ॥ ८७ ॥ दशद्वादशकृत्वा वा ह्याचमेच्च पुनः पुनः। अन्त्ये च वाससां त्यागं स्माता शुद्धा भवेत्तु सा ॥८८॥ कोई ज्वरसे पीड़ित स्त्री रजस्वला हो जाय तो उसकी शुद्धि कैसे हो ? कैसी क्रिया करनेसे वह शुद्ध हो सकती है ? यह एक भारी कठिन समस्या है अतः इसका उपाय यह है कि चौथे दिन दूसरी स्त्री स्नानकर उस रजस्वलाका स्पर्श करे, फिर स्नान कर स्पर्श करे, फिर स्नान कर स्पर्श करे, इस तरह दश-बारह बार स्नान कर स्पर्श करे, और प्रत्येक स्नानमें आचमन करे । अन्त में वह स्पर्श करनेवाली मी अपने कपड़े भी उतार दे और उस रजस्वलाके कपड़े भी उतार दे और स्नान करले । ऐसा करनेसे ज्वर-पीड़ित रजस्वला शुद्ध होजाती है ॥ ८६-८८ ॥ रजस्वला-मरण। पंचभिः स्नापयित्वा तु गव्यैः प्रेता रजस्वला । वस्त्रान्तरकृतां कृत्वा तां दहेद्विधिपूर्वकम् ॥ ८९॥ रजस्वला स्त्री मर जाय तो उसे पंच गव्यसे स्नान कराकर और दूसरे वस्त्र पहनाकर विधिपूर्वक उसका दहन करे ॥ ८९ ॥ - . प्रसूति-मरण । .. . मंतिकायां मृतायां तु कथं कुर्वन्ति याज्ञिकाः। कुम्भे सलिलमादाय पंचगव्यं तथैव च ॥ ९ ॥ ......पुण्याहवाचनैमन्त्र सिक्त्वा शुद्धिं लभेत्तु सा । ... तेनापि स्नापयित्वा तु दाहं कुर्याद्यथाविधि ॥ ९१॥ प्रसूति स्त्री मर जाय तो याज्ञिक पुरुष कैसा करें ? इसकी विधि यह है कि एक कलशमें जल और पंच गव्य भरकर पुण्याहवाचन मंत्रोंद्वारा उसका अभिषेक करें । ऐसा करनेसे प्रसूति शुद्धिको प्राप्त होती है । अनन्तर विधिपूर्वक उसके शवका दाह करें ॥ ९०-९१ ॥ - अन्य-विधि । दशाहाभ्यन्तरे चैव म्रियते चेत्प्रसूतिका। कथं तस्मा भवेच्छुद्धिर्दाहकर्म कथं भवेत् ॥ ९२ ॥

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