Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 426
________________ त्रैवर्णिकाचार। ३८५ समारब्धेषु वा यज्ञमहन्यासादिकर्मसु । बहुद्रव्यविनाशे तु सद्यः शौचं विधीयते ॥ १२४ ॥ यज्ञ, महान्यास जैसे बड़े बड़े धार्मिक प्रभावनाके कार्योंका समारंभ कर दिया हो और अपने प्रचुर द्रव्यका विनाश होता हो, ऐसी दशामें किसी कुटुंबीका मरण हो जाय तो सद्य-तत्काल शुद्धि कही गई है । भावार्थ-ऐसी दशामें स्नान मात्र कर लेनेपर शुद्ध है ॥ १२४ ॥ संन्यासविधिना धीमान् मृतश्चेद्धार्मिकस्तदा । ब्रह्मचारी गृहस्थश्च देहसंस्कार इष्यते ॥ १२५ ॥ कायमाने गृहाद्वाह्ये शवं प्रक्षाल्य नूतनैः । वसनैर्गन्धपुष्पाबैरलंकुर्याद्यथोचितम् ॥ १२६ ॥ अथ संस्कृतये तस्य लौकिकाग्निं यथाविधि । आदाय प्रयते देशे कुयोदौपासनानलम् ॥ १२७ ॥ ___ कोई बुद्धिमान् धर्मात्मा ब्रह्मचारी और गृहस्थ यदि सन्यास-विधिसे मरण को प्राप्त हो तो उसके देहका संस्कार इस तरह कहा गया है कि उसके मृतशरीरको घरसे बाहर लावें, वहां उसका जलसे प्रक्षालन करें और नवीन वस्त्रोंसे तथा गन्ध, पुष्प आदिसे यथोचित अलंकृत करें । अननर जहां उसके शरीरका संस्कार करना हो वहां संस्कारके लिए विधिपूर्वक लौकिक अमि (चूल्हेकी अग्नि ) को औपासन अग्नि बनावें ॥ १२५-१२७॥ विद्वद्विशिष्टपुरुषशवसंस्करणाय वै । एष औपासनोऽग्निः स्यादन्येषां लौकिको भवेत ॥ १२८ ॥ विशेष बुद्धिमान् पुरषोंके शवसंस्कारके लिए यह औपासन अमि काममें लेनी चाहिए, और सर्वसाधारणके लिए लौकिक अग्नि ॥ १२८॥ कन्याया विधवायाश्च सन्तापाग्निरिहेष्यते । अन्पासां वनितानां स्यादन्वग्निरिह कर्मणि ॥ १२९ ।। कन्या और विधवाके शरीर-संस्कारार्थ संतापानि कही गई है और अन्य स्त्रियों के लिए अन्वग्नि ॥ १२९॥ लौकिक अग्निका ग्रहण और उसका लक्षण । . द्विजातिव्यतिरिक्तानां सर्वेषां लौकिको भवेत् । गृहे पाकादिकार्यार्थ प्रयुक्तो लौकिकोऽनलः ॥ १३० ॥ द्विजन्मोंको (जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ हो उनको) छोड़कर अन्य सबके शव-संस्कार के लिए लौकिक अग्नि मानी गई है । घरमें भोजन बनानेके लिए जो चूल्हेकी अग्नि होती है उसे लौकिक अमि कहते हैं ॥ १३ ॥ - औपासन-अग्निका लक्षण । योग्यप्रदेशे संस्थाप्य द्रव्यस्तैः शास्त्रचोदितैः । हुत्वा संस्कृत्य बाह्याग्निरौपासन इति स्मृतः ॥ १३१ ।।

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