Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ सौमसेनभट्टारकविरचितबाद सब मिलकर उसके प्रदक्षिणा दें तथा वही चिताके पास खेर या अन्य लकडियोंका एक हाथ लंबा एक परिस्तर (स्थंडिल-चबूतरासा) बनावें ॥ १४६ ॥ उखावहिं समुद्दोप्य सकृदाज्यं प्रयोज्य च । पर्युक्ष्य निक्षिपेत्पश्चाच्छनैस्तत्र परिस्तरे ॥ १४७॥ ततः समन्तात्तस्योर्ध्व निदध्यात्काष्ठसञ्चयम् । सर्वतोऽग्निं समुज्वाल्य संप्लुष्यात्तत्कलेवरम् ॥ १४८ ॥ ___ अनन्तर उखामिको प्रज्वलित करे, उसमें एक वार घृतकी आहूति दे और चारों तरफ जल सिंचन करे । बाद उस अग्निको उठाकर परिस्तरपर क्षेपण करे, उसके ऊपर लकडियां रक्खे, अनन्तर चिताके चारों ओर अग्नि प्रज्वलित कर उस शवकों दग्ध करे ॥ १४७-१४८ ।। चिता रचने भादिक मंत्र । मंत्र-ॐ हीं हः काष्ठसञ्चयं करोमि स्वाहा । इस मंत्रको पढ़कर चिता बनावे । मंत्र-ॐ हीं हौं झौं असि आ उ सा काष्ठे शवं स्थापयामि स्वाहा । इति मंत्रेण पञ्चामृतरभिषिञ्च्य तत्पुत्रादयो वा त्रिःमदक्षिणां कृत्वा काष्ठे शवं स्थापयेयुः । इस मंत्रको पढ़कर शवका पांच अमृतोंसे अभिषेक करे । उसके पुत्रादि उसके तीन प्रदक्षिगा देकर उसे चितामें स्थापित करें। मंत्र-ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं अग्निसन्धुक्षणं करोमि स्वाहा । अनेनाग्निं सन्धुक्ष्य सपिरादिना प्रसिञ्च्य प्रज्वाल्य जलाशयं गत्वा स्नानं कुर्यात् । इस मंत्रका उच्चारण कर अग्नि जलावें, घृत आदिकी आहुति दें, चितामें अमि लगावें । अनन्तर जलाशयपर जाकर स्नान करें । अथोदकान्तमायान्तु सर्वे ते ज्ञातिभिः सह । वोढारस्तत्र का च यान्तु कृत्वा प्रदक्षिणम् ॥ १४९ ॥ अनन्तर वे सब जातीय बांधवोंके साथ साथ जलाशयके समीप जावें । परन्तु उनमेंसे विमान उठानेवाले और संस्कारकर्ता उस चिताकी प्रदक्षिणा देकर जावें ॥ १४९ ॥ तिथिवारक्षयोगेषु दुष्टेषु मरणं यदि । मृतस्योत्थापनं चैव दीर्घकालादभूयदि ॥ १५० ॥ तदोषपरिहारार्थ कर्ता कृत्वा प्रदक्षिणम् । प्रांजलिः प्रार्थ्य गृहीयात्सायश्चित्तं विपश्चित्तः ॥ १५१ ॥ यथ शक्ति जिनज्या च महायन्त्रस्य पूजनम् । शान्तिहोमयुतो जाप्यो महामन्त्रस्य तस्य वै ॥ १५२ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440