Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 431
________________ ३९० सोमसेनभट्टारकविरचित क्षौर-विधि। ततः कपालदहने जाते की च दाहकः।। शातयश्च यथायोग्यं विदध्युर्वपनं तदा ॥ १६१ ॥ मातुः पितुः पितृव्यस्य मातुलस्याग्रजस्य च । श्वशुराचार्ययोरेषां पत्नीनां च पितृष्वसुः ॥ १६२ ॥ मातृष्वसुभगिन्याश्च ज्येष्ठाया मरणे सति । दृष्टे तदानीं वपनं श्रुते प्रामासतो भवेत् ॥ १६३ ॥ मातरं पितरं ज्येष्ठमाचार्य श्वशुरं विना । न कार्य वपनं त्वन्यमृतौ गर्भवता तदा ॥ १६४ ॥ कपालका दहन हो जानेपर कर्ता, दाहक और अन्य बांधव यथायोग्य क्षौरकर्म-मुंडन करावें। माता, पिता, पितृव्य (चाचा) मामा, बड़ा भाई, श्वशुर, गृहस्थाचार्य, इन सबकी धर्म-पत्नियां, पिताकी बहिन-भुआ,माताकी बहिन-मौसी और अपनी बड़ी बहिन इनमें से कोई भी मरे तो क्षौरकर्म करावे । इनमेंसे किसीके मरणके समय वहीं हो तो उसी समय क्षौरकर्म करावे । अगर. 'विदेशमें हो तो मरण दिनसे लेकर एक माह पहले मरण सुने तो जब सुने तभी करावे । एक माहसे ऊपर मरण सुने तो माता, पिता, बड़ा भाई गृहस्थाचार्य और श्वशुर इन को छोड़कर अन्यका मरण होने. पर क्षौरकर्म न करावे ॥ १६१-१६४ ॥ ___ स्नान-विधि । ततोऽवगाह्य सलिले कटिदघ्ने सचेलकम् । निमज्योत्थाय वाराँस्त्रीन् स्नानं कुर्याद्यथाविधि ॥ १६५ ॥ जलानिर्गत्य तत्तीरे वस्त्रं निष्पीड्य तत्पुनः । धृत्वाऽऽचम्य ततः प्राणायाम कुर्यात्समन्त्रकम् ॥ १६६ ॥ अनन्तर कटिपर्यंत पानीमें तीन वार डुबकी लगाकर यथाविधि वस्त्रसहित स्नान करें । पश्चात् जलसे बाहर निकलकर उसकी तीरपर वस्त्रोंको निचोड़कर और अच्छी जगहपर रखकर आचमन करें और मंत्रपर्वक प्राणायाम करें ।। १६५-१६६ ॥ शिलास्थापन और ग्रामप्रवेश । ततो मृतस्य तस्यास्य रत्नत्रयसमाश्रयम् । देहं विनष्टं सन्न्याससमाधिमृतिसाधनम् ॥ १६७ ॥ उत्कृष्टपरलोकस्य संप्राप्तेरपि कारणम। मत्वेति धर्मवात्सल्याद्वन्धुवात्सल्यतोऽपि च ॥ १६८॥ तदेहप्रतिबिम्बार्थं मण्डपे तद्विनाऽपि वा । स्थापयेदेकमश्मानं तीरे पिण्डादिदत्तये ॥ १६९ ॥

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