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सोमसेनभट्टारकबिरचित
ग्यारहवें दिन, एक दहन करनेवालेको, एक वस्त्राभूषण पहनानेवालेको और चार कंघेपर उठाकर ले जानेवालोंको एवं छह पुरुषोंको स्नान कराकर भोजनसे तृप्त करे ॥ १९९ ॥ बारहवें दिन का कर्तव्य ।
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द्वादशे दिवसे श्रीमज्जिन पूजापुरस्सरम् ।
मुनीनां बान्धवानां च श्राद्धं कुर्यात्समाहितः ।। १९२ ॥ श्रद्धयाऽन्नप्रदानं तु सद्भ्यः श्राद्धमितीष्यते ।
मासे मासे भवेच्छ्राद्धं तद्दिने वत्सरावधि ।। १९३ ॥ अत ऊर्ध्वं भवेदब्दश्राद्धं तु प्रतिवत्सरम् । आद्वादशाब्दमेवैतत्क्रियते प्रेतगोचरम् ॥ १९४ ॥
बारहवें दिन जिनभगवान् की पूजा करे, मुनियोंका और बांधवोंका श्राद्ध करे- उन्हें आहार दान दे । साध जनोंके लिए श्रद्धापूर्वक आहार दान देनेको श्राद्ध कहते हैं । यह श्राद्ध एक वर्षपर्यंत मृतक तिथिके रोज प्रति माह करे । इसे मासिक श्राद्ध कहते हैं । अनन्तर बारह वर्ष तक प्रतिवर्ष श्राद्ध करे ( इसे वार्षिक श्राद्ध कहते हैं ) ॥। १९२-१९४ ॥
मृतबिंबकी स्थापना |
सुप्रसिद्धे मृते पुंसि सन्यासध्यानयोगतः ।
तद्विम्बं स्थापयेत् पुण्यमदेशे मण्डपादिके ।। १९५ ॥
सन्यास विधिसे या ध्यान समाधिसे कोई प्रसिद्ध पुरुष मरे तो पुण्य स्थान में मंडप वगैरहं बनवाकर उसमें उसके प्रतिबिंब ( चरणपादुका वगैरह ) की स्थापना करे ॥ १९५ ॥ वैधव्य - दीक्षा | मृते भर्तरि तज्जाया द्वादशाह्नि जलाशये ।
स्नात्वा वधूभ्यः पञ्चभ्यस्तत्र दद्यादुपायनम् ॥ १९६ ॥ भक्ष्यभोज्यफलैर्गन्धवस्त्रपुष्पपर्णैस्तथा ।
ताम्बूलैरवतंसैश्च तदा कल्प्यमुपायनम् ॥ १९७ ॥ विधवायास्ततो नार्या जिनदीक्षासमाश्रयः ।
श्रेयानुत स्विद्वैधव्यदीक्षा वा गृह्यते तदा ।। १९८ ।।
पतिका परलोकवास हो जानेपर उसकी स्त्री बारहवें दिन जलाशयपर स्नानकर पांच स्त्रियों को उपायन-भेंट दे । उत्तम भोजन, फल, गंध, वस्त्र, पुष्प, नकद रुपया-पैसा, तांबूल अवतंस वगैरह देना उपायन है । इसके अनन्तर यदि वह विधवा स्त्री जिन - दीक्षा - आर्यिका या क्षुल्लिकाके व्रत ग्रहण करे तो सबसे उत्तम है, अथवा नहीं तो वैधव्य - दीक्षा ग्रहण करे ॥ १९६-१९८॥
वैधव्य अवस्थाके कर्तव्य |
तत्र वैधव्यदीक्षायां देशव्रतपरिग्रहः । कण्ठसूत्रपरित्यागः कर्णभूषणवर्जनम् ॥ १९९ ॥